________________
'चम्पक' चोटी पर चढ़े, पुरुषां रो पुरुषार्थ । हुवै परायी कृपा पर, चिन्तन कद चरितार्थ ॥२२॥
अनुभव-दीपक स्यूं दिसै, 'चम्पक' च्यारूं कूट । गुण्यां बिना दुनियां गिणे, भण्यो पढ्योड़ो ऊंठ ॥२३॥
गणित रु गुरुरी अलख गति, 'चम्पक' चढ़ आकाश। गगन-दीप दरिया गुरु, पर-हित कर प्रकाश ॥२४॥
डोर सुगुरु के हाथ मै, गोचां खाय पतंग। टूट तो लूट जगत, विधि को 'चम्पक' व्यंग ।।२।।
गुरुवर गुर-ज्ञाता गजब, परखै 'चम्पक' पीड़। जीवन झोंकै जद-कदे, पड़े भगत पर भीड़ ॥२६॥
'चम्पक' मंदिर री मुरत, माथै चाढ़े लोक । आचार्जा री आंण ही, साधै सगला थोक ॥२७॥
जद गुरु देवै ओलमो, झुकज्या चरणां आगे। कद 'चम्पक' पतझड़ बिना, पेड़ां रै फल लागै ॥२८॥
गण गेले गूंज गणी, गण पूजे गणि-गोप। गण जूझै गणि आंण पर, 'चम्पक' गणि गण-ओप ॥२६॥
ऊपर उज्जल धोलियो, मन मिनखां रै मेल । जेपुर री उपमा जचे, 'चम्पक' गल्यां रु हेल ॥३०॥
मन गलतो, मन गोमती, मन ही तीरथ-घाट । मन मंदिर, मन देवता, मन ही पूजा-पाठ ॥३१॥
मन गंगा, मन गंदगी, मन रावण, मन राम ।। सुरग-नरक पुन-पाप मन, मन उजाड़, मन ग्राम ॥३२॥
मन सीता, मन सुर्पणां, मन हि कृष्ण, मन कंस । 'चम्पक' मन योगी-यवन, मन कौओ, मन हंस ।।३३।।
फुटकर फूल १३५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org