Book Title: Aasis
Author(s): Champalalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 341
________________ देखते-देखते वह कुत्ता एक बार फिर चढाई में काफी ऊपर तक चढ़ा और फिर लुढ़क गया । जब तक चैं चैं करता नीचे आया, आचार्यश्री के साथ रहने वाले कासी हणूताराम जाट ने घड़े पर एक लकड़ी मारी। फटाक घड़ा फूटा घड़ा तो फूट गया, पर उसका गला कुत्ते के गले में ही रह गया । कुत्ता मुक्त होते ही इस कदर भागा मानो पिंजरे से पंछी छूटा हो । हमने कई दिनों तक देखा वह कुत्ता उस गलवे को अपने गले में लिये फिरता रहा । जब भी वह हमें दिखता भाईजी महाराज फरमाते वह रहा 'केदार कंगण ।' " लाग्यो 'चम्पक' ' लोभ मैं, कुक्कर बिना विचार । कई दिनों तक खटकसी, ओ कंगण केदार ।। " Jain Education International For Private & Personal Use Only संस्मरण ३११ www.jainelibrary.org

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