Book Title: Aasis
Author(s): Champalalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 344
________________ ६४ पेट्रोल भभक जाय तो दिल्ली फंवारा रोड की परली नुक्कड़ पर एक पेट्रोल पम्प था । गाड़ी में तेल भर देने के बाद ड्राइवर एक कनस्तर में तेल भर रहा था। हमने देखा एक सज्जन वहीं पास खड़े सिगरेट पी रहे थे। भाईजी महाराज का ध्यान गया। मुनिश्री ने फरमाया, आदमी तो पढ़ा-लिखा सभ्य-सा लगता है पर संयम की कमी है। सिगरेट कहां पीना, कहां न पीना इसे इतना ही ध्यान नहीं है । पेट्रोल भभक जाए तो? हम अभी कम्पनी बाग का फाटक पार ही नहीं कर पाये थे कि अचानक आग भभक गयी। वे सज्जन, जो सिगरेट पी रहे थे, चपेट में आ गये। उनके पांव में तथा हाथ में दो चार फफोले फूटे । आग शीघ्र ही शान्त हो गई। खास नुकसान नहीं हुआ। भाईजी महाराज स्वयं पुनः वहां पधारे । उस भाई को दर्शन दिए और पूछाक्यों घबराहट तो नहीं है ? तुम्हारा भाग्य तेज था, देखो, थोड़े में ही सर गया। भाई ! शूली की सजा कांटे में ही टल गयी। अभी-अभी मेरे मन में आया ही थाआदमी तो सभ्य और सज्जन लगते हैं, पढ़े-लिखे होकर भी संयम की कमी है। सिगरेट कहां पीना, कहां न पीना, जानते हुए भी प्रमाद कर रहे हैं । भाई ! सिगरेट काम की नहीं है । देखो, अभी कितना अनर्थ हो जाता? 'छोटी-सी गलती बण, 'चम्पक' भारी भूल । सारहीन सिगरेट ने, मानो अनरथ मूल ॥' भाईजी महाराज के साफ हृदय की सच्ची बात चोट कर गयी। उस भाई के मन में ग्लानि हुई और उसने मुनिश्री के चरण छूकर सदा-सदा के लिए सिगरेट छोड़ दी। भाईजी महाराज ने आशीर्वाद के रूप में मांगलिक फरमायी और उसे प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहने का उपदेश दिया। ३१४ आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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