Book Title: Aasis
Author(s): Champalalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 354
________________ कालै' स्यं कयानै करै, मरख ! माथाकूट कुओ कबूतर नै दिसै, झूठ नै सो झूठ' वह बेचारा देखता ही रह गया । हमारे दोनों के होंठ चिपक गये। वह बिना कुछ आगे बोले सपाक चलता बना। मैं सोच रहा था-आज भड़ाके उड़ेंगे। पर मुनिश्री ने मुझे एक बात के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं कहा । केवल एक प्रश्न पूछा-सागर ! मूरख से काम पड़े तो क्या करना चाहिए? मैंने नीची नजर टिकाये कहा-- मौन । श्रीभाईजी महाराज प्रसन्नचित्त से जरा मुस्कराए और मैं निश्चिन्त भाव से अपने काम में लग गया। १. बे-समझ, कलुषित, मन के मैले या कुमाणस को राजस्थानी भाषा में 'काला' कहते हैं। ३२४ आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372