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पोथी क्या पढ़
१०-११ बज गये हैं। कमरा नं० ११० हमें साफ सफाई के बाद मिल गया है। धर्मचन्द सुराणा (चूरू) सुबह से हमारे यहां बैठे हैं । वे पूरी व्यवस्थाएं बिठाकर ही जाना चाहते हैं । भाईजी महाराज का बिस्तर लगा दिया है। डॉक्टरों ने पुनः शारीरिक जांच की। रक्तचाप, नाड़ी का दबाव, गरमी और फेफड़ों का परीक्षण किया। शल्यक्रिया पसलियों पर पसवाड़े में होनी है, अतः सीने और बगल के बाल निकाल कर सफाई करने को कहा है।
धर्मचन्द सुराणा की उपस्थिति में हमने सारा काम किया । अब मुझे (श्रमण) आहार करने मार्बल-भवन जाना है। भाईजी महाराज अकेले ही यहां बिराजेंगे। मैंने एक पुस्तक और चश्मा निवेदन किया और कहा-आप पुस्तक पढ़ें इतने में मैं वहां जाकर आ रहा हूं। मैं चला गया। लौटकर आया तो देखा, भाईजी महाराज गुमसुम किसी चिन्तन में बैठे हैं । मैंने सोचा मन नहीं लगा होगा। क्योंकि सदा चलह-पहल में रहने वाले को एकान्त अटपटा-सा लगता है। मैंने पूछा-क्यों, पुस्तक नहीं पढ़ी आपने? भाईजी महाराज ने फरमाया
पोथी सागर ! के पढूं। समझ लियो मैं सार ।। प्रेम भाव रा पाधरा, 'चम्पक' अक्खर च्यार ॥
२८ अप्रैल, १९७५
३३६ आसीस
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