Book Title: Aasis
Author(s): Champalalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 369
________________ बार सड़क पर चलते, रुकते, सोते, बैठते, रास्ता काट रहे थे। मंगलवार हनुमान बाबे का दिन । आचार्यप्रवर का सालासर पधारना। सैकड़ो-सैकड़ों लोगों का आवागमन । कारों, बसों और मोटरों के यात्री उतर-उतर कर दर्शन करते । स्थिति पूछते । परामर्श देते । सालासर जाते और आचार्यश्री से निवेदन करते। हमने पांच मील का रास्ता पांच घण्टे में पार कर प्याऊ में विश्राम लिया। वहीं रुकने का आदेश आया। आचार्यश्री ने मिलने का निर्णय लिया। भाईजी महाराज ने पुनः निवेदन करवाया-आप अपना कार्यक्रम यथावत् ही रखायें। मैं यहां से डेढे किलो मीटर धां गांव सायंकाल जाना चाहता हूं, कल लाडनूं पहुंचना आसान रहेगा। - आज दिन में सैकड़ों आते-जाते यात्रियों ने दर्शन किये । सेवा कराई। बातचीत की। विश्राम लेकर उठते ही मुझसे कहा गया—एक कागज-कलम देना तो। मैंने कहा-क्यों भाईजी महाराज ? उन्होंने फरमाया-तू दे तो सही। मैंने एक कागज की स्लीप और डॉट पेन निवेदन किया। उन्होंने कुछ लिखा, कागज समेट, मोड़कर अपने चादर के पल्ले बांध लिया। विहार किया। वह एक मील का रास्ता सो कोस बन गया। एक ओर मणि मुनि और दूसरी ओर मैं दोनों के कंधों का सहारा लिये 'धां' पहुंचे। चबूतरे पर विराजे । अब कुछ नहीं था। सर्व सामान्य । रोजमर्रा की तरह बातें हो रही थीं। थानमलजी बाफणा (सुजानगढ़) पास बैठे चर्चा कर रहे थे । डॉ० व्यास ने जब सुना, भाईजी महाराज के आज असाता है, वे सुजानगढ़ से आये। पूरी चेकिंग की सब कुछ सामान्य था। ___ भाईजी महाराज ने डॉ० व्यास का हाथ पकड़ कर कहा-डॉक्टर ! जैसे-तैसे मुझे लाडनूं पहुंचा दो। ___डॉक्टर व्यासजी हैरान थे । आज यह वज्र-सा मनोबल ढीला क्यों पड़ा? उन्होंने कहा-भाईजी महाराज ! आज यह कमजोरी की बात आपके मुंह से कैसे ? विश्वास कीजिये, मैं लाडनूं पहुंचा दूंगा। पर एक इन्जेक्शन ले लीजिये। भाईजी महाराज ने कहा-डॉक्टर ! अभी तो सूर्यास्त का समय हो गया है, मैं इन्जेक्शन नहीं ले सकता। ___ बात कल सुबह पर रही । रात को साढ़े आठ बजे डॉक्टर गुहिराला लाडनूं से आये। सब कुछ ठीक-ठीक था । केवल कलेजे पर जलन महसूस हो रही थी। शायद एसिडिटी बढ़ी हो। शयन के समय फतहपुर वाले सोहन लालजी रायजादा अचानक झुंझलाकर बड़बड़ाते हुए उठे-'हे देवी-देवताओ ! आज के हो गयो थार? आके सूझे है?' हमने पूछा क्या बात है? वे यह कहते हुए बाहर चले गये-नहीं, नहीं, महाराज ! संस्मरण ३३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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