Book Title: Aasis Author(s): Champalalmuni Publisher: Adarsh Sahitya SanghPage 356
________________ 'चम्पक' काम बढ़ेला चनणं, जग मैं जता न जात । लवै अबै क्यूं लागगी, खरची थारै हाथ ॥' उसकी बोलती बंद हो गयी। हम सब हंस पड़े। ३२६ आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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