Book Title: Aasis
Author(s): Champalalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 343
________________ महाराज ! मेरी गलती माफ करें, मैंने आपसे पूछे बिना ही गुरुदेव को अर्ज कर दी मुनिश्री ने फरमाया-पूछे बिना अर्ज तो कर दी, पर यह सलाह किसने दी तेरे को। देख, बुरा तो तेरे को भी लगेगा और इनको भी लगेगा, पर ये लक्षण बाप के नहीं पाप के हैं। कहीं तुझे न डुबो दे, ध्यान रखना। अरे ! बाप रो मोह ओ, आछो नहिं है अन्त । 'चम्पक' फोड़ा पड़ेला, सुणाले सन्त वसन्त ।। वे जड़ावचन्दजी के साथ गए और वही हुआ जो मुनिश्री की धारणा थी । बाप तो गया सो गया, बेटे को भी ले गया । जब ये समाचार सुने तो अफसोस के साथ भाईजी महाराज ने फरमाया 'मालव री काची रही, ठेट जेट की जेट । गा, गलावड़ो ले गयी, खेलो मटियामेट ।। संस्मरण ३१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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