Book Title: Aasis
Author(s): Champalalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 349
________________ पूछा-रात को कौन-कौन सन्त गा रहे थे । बुलाओ उन्हें । पूछने का ढंग जरा कड़ा था। तपस्वी सुखलालजी स्वामी पता लगाने आये। हम संत सहम गये। मुनि सुखलालजी ने संतों के साथ-साथ जयचन्दलाल जी से भी कहा-जयचन्द ! इय कियां सुनों-सुनों बैठ्यों है ? गुरुदेव याद फरमावै है नी ? हम सब गुरुदेव के श्रीचरणे में उपस्थित हुए । आचार्यदेव ने जरा आंख तेज कर फरमाया-रात को वह कौन-कौन थे? ___ अब बोले कौन ? हम सबके कलेजे हाथ में आ रहे थे । गधया गणेशदासजी ने बात साहरी, 'गुरुदेव ! आप कृपा कराओ। आप बिना टांबरां री गलत्यां कुण निकाले ।" हम सबको तो पसीना छूट रहा था। कालूगणीराज जब कड़ाई करवाते उनका वह सिंह रूप देखते ही थर कांपने लगते । जयचन्दलाल जी ने हिम्मत कर कहा- चम्पालाल जी स्वामी थे, अब मैं कहां छुपता ? मैंने साहम बटोरा और कहा- हम थे गुरुदेव ! अमुक-अमुक-अमुक । कृपालु कालूगणीजी जरा मुस्कराये और फरमाया-ऐसे गाया करते हैं ? बस, अब क्या था । हम सबके जी के जी आ गया । पुनः अमृत झरती गुरुदेव की आंखों ने हमें अभय दे दिया। सबके चेहरों पर खुशहाली दौड़ आयी। पासा पलट गया । वातावरण में नया रंग आया। अब लगे गुरुदेव एक-एक कर रात को गायी गयी रागों को पूछने । कई रागों में अन्तर था, वह फर्क निकाला। कहीं तोड़ ठीक नहीं थे, उन्हें सुधारने को फरमाया । सब गायकों में मेरी देशी पास रही । आचार्य देव ने मुझसे-जल्लो, करवो, करेलो, कुरज्यां और कीया सुनी। ये रागें एक तो कड़ी बहुत हैं, दूसरे गुरुदेव के सामने अच्छे-अच्छे गायक भी घबरा जाते हैं, उनका अतिशय ही ऐसा होता है। जयचन्दलालजी ने जैसे उपालम्भ में सहयोग दिया, वैसे ही शाबाशी में भी साथ निभाया। जब-जब गाते-गाते मेरा गला भर जाता, या मैं आगे की पंक्ति भूल जाता तो जयचंदलालजी ने उस जोड़-तोड़ में टेरिये की भूमिका निभाई। श्री भाईजी महाराज ने अपना संस्मरण समेटते हुए कहा-भाई तब से जयचन्दलालजी का हमारा साथ है । भला, भंवरू की रखू इसमें क्या बड़ी बात है ? ये फूल से टाबर, इस गरमी में सेवा जो कर रहे हैं, कौन निकले इस लाय में ? सोने का टक्का देने पर भी ये आने वाले नहीं हैं। इन सहल-समिति के युवकों की लगन और भक्ति-भाव है, अतः मेरे लिए इन्होंने इतना कष्ट उठाया है । मैं तो उस सिद्धान्त का आदमी हूं। 'मतलब स्यूं 'चम्पक' मिल ज्याणो, बता ! बड़ो के बात? एकर साथ निभावै बी रो, सदा निभाणो साथ।' संस्मरण ३१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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