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इतने में ही टल गया
अणवत-विहार (दिल्ली) के फाटक पर भाईजी महाराज खड़े मेरे आने का इन्तजार कर रहे थे। पास में कुछ लोग थे। मन्नालालजी बरडिया (सरदार-शहर) भी वहीं थे । एक अवस्था प्राप्त सज्जन स्कूटर पर निकले। पीछे बैठी थी उनकी श्रीमतीजी। स्कूटर जरूरत से अधिक तेज था। उन्हें देख, भाईजी महाराज ने कहा-'मिन्नू ! देख, बुढ़ापो भड़काव है। औ कठेई भुवाली खायला भलो।'
धड़ाम आवाज आई। देखा अगली मोड़ पर मुड़ते हुए वृद्ध दम्पति का स्कूटर फिसल गया । श्रीमतीजी दो-तीन गुलेटी खा, एक ओर जा गिरौं । स्कूटर एक ओर था और श्रीमानजी एक ओर । लोग भाग कर गये। उन्हें उठाया। बहुत थोड़े में सर गया था। - हमने बहुत बार देखा ऐसे अवसर पर भाईजी महाराज चकते नहीं थे। मुनिश्री घटना स्थल पर पधारे। उनसे पूछा-चोट ज्यादा तो नहीं लगी? भाई साहब ! स्कूटर चलाने में भी संयम की अपेक्षा है। दो मिनट के लोभ का परिणाम जीवन को खतरा होता है । पर, किसे कहें ? किसी को भी फुरसत नहीं है। समय की जितनी तंगी आज के लोगों को है, शायद पहले वालों को नहीं थी।
'संयम सुध-बुध विसर कर, भाजड़-भाजी जाय। 'चम्पक' चेतो बापरे, (जद) फल प्रमाद रा पाय ॥'
और वे सज्जन हाथ जोड़े कह रहे थे-'सत्य वचन' सन्तों के दर्शन भले हए, इतने में ही टल गया।
३२० आसीस
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