Book Title: Aasis
Author(s): Champalalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 340
________________ ६२ मुंह कैसे निकलेगा? बीकानेर, हमालों की बारी के बाहर, गंगाशहर-मार्ग की बात है । नाहटों की बगीची के पास हम आचार्यप्रवर के आगमन की राह देख रहे थे। भाईजी महाराज का ध्यान एक ओर पड़े घडे (मंगल) पर गया। एक कुत्ता बार-बार उसमें मुंह डालने का यत्न कर रहा था। अपना-अपना अन्दाजा है। प्रायः देखा गया है भाईजी महाराज का अन्दाजा शतप्रतिशत सही उतरता है। कुत्ते को देख मुनिश्री ने फरमाया-लगता है, इस घड़े में कोई न कोई खाने की चीज है। कुत्ता खाने के लोभ में प्रयत्न तो कर रहा है-किसी तरह मुंह भीतर तक पहुंच जाए ।और जोर लगाने पर मुंह भीतर चला भी जाएगा पर यह अज्ञानी इतना नहीं समझता, फंसा हुआ मुंह फिर निकलेगा कैसे ? हम बात कर ही रहे थे कि वही हुआ, जो भाईजी महाराज का अन्दाजा था। कुत्ते ने जोर लगाया और मुंह घड़े में फंस गया। अब तो लेने के देने पड़ गये । कुत्ता घबरा गया । वह अंधेरे में भटके प्राणी की भांति दिग्मूढ़ हो गया। उसे कुछ दीख नहीं रहा था । वह पड़ोस के ढिस्से की ओर ऊपर चढ़ने लगा । वह चढ़ता है फिर लुढ़कता है, नीचे तक आ गिरता है। फिर चढ़ता है फिर गिरता है। इतने में आचार्यश्री पधार गए । भाईजी महाराज ने संकेत करते हुए फरमाया, "खमा ! अन्दाता ! दिखाओ ! अज्ञानी कुत्ते की दशा। ओ लोभ ही मरावै है इं मिनख नै।" आचार्यप्रवर ने कदम रोके और पूछा-अब यह कैसे निकलेगा ? पास खड़े एक गृहस्थ ने कहा--निकल जाएगा यों ही। भाईजी महाराज ने अर्ज की-नहीं-नहीं, अन्दाता ! यों निकलने वाला नहीं है। यह गलवा इस कदर इसके गले में फंसा है कि घड़ा फूट जाने के बाद भी यह गलावड़ा तो संभवतः इसके गले में कई दिन रहेगा। ३१० आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372