Book Title: Aasis
Author(s): Champalalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 327
________________ ५५ पगडंडी का रास्ता हमने एक गांव से विहार । गांव का नाम तो मैं भूल गया पर मेवाड़ की घटना है । किया । सड़क सड़क चल रहे थे। सड़क भी कच्ची थी रास्ता मगरी ( पहाड़ियों) का था। थोड़ी दूर चले कि एक घुमाव पर हमने अपने आगे चलने वाली मुनिमंडली को देखा । ऐसा लगा कि बहुत घुमाव है । इधर-उधर देखने पर एक पगडंडी दिख पड़ी । वह बहुत साफ तो नहीं थी, पर थी चालू । सन्तों ने भाईजी महाराज से कहा - मोटा पुरुषां ! सड़क तो बहुत घूम रही है । यह पगडंडी का रास्ता सीधा निकलेगा । दो क्षण रुककर मुनिश्री ने फरमाया - ना भाई ! ना, शकुन रोक रहे हैं, यह रास्ता गलत होना चाहिए। हम सड़क सड़क आगे बढ़े। कोई दस कदम भी नहीं चले होंगे, मुनिश्री ने फरमाया- लगता है पीछे वाले सन्त कहीं भटक जाएंगे, अतः पगडंडी पर निषेध चिह्न (क्रोस) तो कर दो। आपने अपने गेड़िये से क्रोस का चिह्न कर दिया । घुमाव के उस छोर पर जाकर हमने देखा तो पिछले सन्त हमारी उसी पगडंडी को देख रहे हैं । जो हमारे मन में आई उनके भी आई होगी । उन्होंने निषेध -चिह्न की परवाह न कर, पगडंडी ले ली । मुनिश्री ने दूर से बहुत संकेत किए पर वे उन्हें उलटा ही लेते गये । उनके कदम शीघ्र गति से मार्ग तय कर रहे थे। दो मिनट के बाद तो वे हमें दीखने से ही रहे । वे चाहते थे, हम भाईजी महाराज को पीछे छोड़, आगे पहुंच जाएं। उन्होंने गति को और बढ़ा दिया । जवानी के दिन थे, पैरों में ताकत थी । बिना इधर-उधर देखे, वे अपनी धुन में चलते ही गये । मीलों का रास्ता तय कर लिया पर अभी मूल सड़क नहीं आयी । आती कैसे ? सड़क उस पहाड़ी से पूर्व की ओर मुड़ गई । वे भले आदमी अपनी मस्ती में पगडंडी पर चलते ही चले । पगडंडी पश्चिम की ओर घूमती गई। अगली टेकरी पार करने पर उनके सामने एक सूखी संस्मरण २६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372