________________
बरसाती नदी आ गयी। बस, वहां जाकर पगडंडी समाप्त । अब जाएं भी तो किधर ? पूछे भी तो किसे ? वीरान जंगल । हिम्मत बहादुर वे दोनों सन्त उज्जड़ जंगल में रडभड़ते दुपहरी में जाते एक छोटे से आदिवासी गांव में पहुंचे। दो घंटा विश्राम किया। ढलती दुपहरी में वे अगले गांव का रास्ता पूछते-पूछते सायंकाल हमसे आकर मिले।
वे खुद खिन्न हो गये थे। भाई जी महाराज तो दस बजे से उनकी चिन्ता में थे। न जाने कितने लोगों से पूछा। कितनों ने ही खोज-खबर के प्रयत्न किए, पर कहीं अता-पता नहीं लगा। जब सन्त सही-सलामत पहुंचे तब जाकर मुनिश्री को चैन पड़ा । ज्यों ही सन्त आए, उन्हें आश्वस्त किया। कुछ विश्राम कराकर, पास में बैठ आहार करवाया। दिन थोड़ा था। आहार-पानी कर चुकने के बाद उन्हें सारा हाल पूछा। वे पश्चात्ताप के स्वरों में अपनी आप-बीती बता रहे थे। इसी बीच भाईजी महाराज ने मधुर हास्य बिखेरते हुए कहा
गफलत स्यूं गोता पडे, खेद खिन्न हो ज्याय। 'चम्पक' जो पथ चूकज्या, (वो) पग-पग पर पिछताय ॥'
२९८ आसीस
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org