Book Title: Aasis
Author(s): Champalalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 307
________________ भंवरलालजी दूगड़ ने लगभग सरदारशहर के सभी मान्य वैद्यों से परामर्श किया पर उपचार नहीं बैठा । बिगड़ते-बिगड़ते स्थिति नाजुक दौर पर चली गयी। एक रात मैं फिर पांच घण्टा बेहोश रहा। सभी ने आशा छोड़ दी। उस रात सेठ भंवरलालजी, वैद्य प्रभुदयालजी, पंच नेमीचन्दजी बोरड़ आदि दसों श्रावक, भाईजी महाराज के पास रात भर बैठे रहे। भिन्न-भिन्न चिंतन चले। सबसे खूबी की बात तो यह थी, अभी भाईजी महाराज ने आशा नहीं छोड़ी थी। उनका विश्वास था, यह भी एक झोंका है, निकल जाएगा। मुझे होश आया। अब उठी पेट में शूल । वह स्थिति भी वही थी। मैं धरती पर टिक नहीं पा रहा था। उछल-उछलकर दर्द हैरान करता रहा । सभी साथी सन्त और दर्शक श्रावक द्रवित थे। भाईजी महाराज-भिक्षु स्वाम, भिक्षु स्वाम का जाप जप रहे थे। आचार्यप्रवर दर्शन देने पधारे। वयोवृद्ध मंत्रीमुनि मगनलालजी स्वामी 'कुरसी' में पधारे। रात बीती, अनुभवी उपचार चले। माजी महाराज, महासतियांजी लाडांजी तथा साध्वियां आयीं, सबने अपने-अपने उपचार बताए। ___आशुकवि सोहनलाल सेठिया आया। उसने भाईजी महाराज के कान में कुछ अर्ज की। मुनिश्री ने सन्त वसन्त को आवाज दी और वह कविता जिसे मैंने उज्जैन में बनाया था, निकालकर लाने को कहा। मुनि वसन्त मेरे पास आये और संकेत किया। मैंने आंख खोली। पूछा । कविता कहां है ? मैं झेंप गया। अपनी पूरी शक्ति लगाकर भी मैं बोल नहीं पाया। भाईजी महाराज ने फरमाया-उसे क्या पूछता है ? ले आ उसकी कापियांडायरियां। वे कापियां ले गये । सोहन-सेठिया ने ढूंढकर वह कविता निकाली। भाईजी महाराज ने पढ़ा-उसकी पहली पंक्ति थी 'जीने से मैं ऊब गया हूं, मुझे मृत्यु से मिल लेने दो।' मुनिश्री को झुंझलाहट आयी बिना आगे की पंक्तियां पढ़े एक ही झटके में कविता फाड़ फेंकी। मैं अभी भी अपने बिहोने पर पड़ा-पड़ा कह रहा था-मेरी कविता मत फाडिए। मेरे मरने के बाद भी यह कविता मेरा परिचय देगी। मेरा जी बहुत तिलमिलाया। मेरे देखते-देखते कागज के उन टुकड़ों को पानी से गलाकर मुनिश्री ने अपने हाथ से कुट्टा बनाया और गांव बाहर जाकर धोरों में उन्हें गाड़ देने (परठने) का आदेश दे, भाईजी महाराज मेरे पास पधारे । कवि सोहनलाल साथ था। मुनिश्री जी ने आते ही फरमाया-बस, अब,रोग कट गया। मुझे क्या पता संस्मरण २७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372