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श्री भाईजी महाराज ने प्रत्युत्तर में केलवे नगर की विशेषताएं, ठिकाने के अपने संघीय-संबंध बताते हुए फरमाया
बेशक चम्पा मंदिरों में चढ़ता है, भक्तों की भक्ति का माध्यम बनता है। मनोहर होता है। उसकी बन्दनीयता भी सही है। पर यह सब चम्पा की विशेषताएं नहीं हैं। महानत तो है माली की, कृति है वृक्ष की, कीर्तना है भक्तों की और आदरणीयता है सुगन्धित सफेदी की।
- पूज्यता तक पहुंचाने वाले गुरु होते हैं । महानता है पूज्य गुरुदेव कालूगणी की, जिन्होंने इस चम्पे को सींचा-रुखारा । प्रधानता है संघ-वृक्ष की तेरापंथ जैसे कल्पतरु की जिसने आश्रय दिया। प्रमुखता है भक्तों की, जिन्होंने ना-कुछ व्यक्ति को इतना आदर दिया, मान दिया और सबसे अधिक पूजनीयता है सुगन्ध-गुणयुक्त सफेद आचार की। इसलिए कविराजजी यों कहिये
'माली सींच्यो, तरु फिल्यो, चढयो भक्तजन हाथ। चम्पे री आ पूज्यता, सदा सफेदी साथ ।
२६० आसीस
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