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प्रारंभ से ही मुझे पराये दुःख में पड़ने की आदत थी और आज भी है । पर मर्यादा-विधि का उल्लंघन होते ही याद आ जाता है
'पडूं परायी भीड़ मैं, जदकद हुवै प्रमाद। 'चम्पक' हलदी-दूधरी, (बा) घटना आवै याद॥'
१९८ आसीस
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