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२८ पाणी लारै लहताण
श्री भाईजी महाराज की २००६ की दिल्ली यात्रा में हरियाणा आया। सैकड़ोंसैकड़ों लोग पैदल यात्रा में साथ थे। हरियाणा का अग्रवाल समाज भक्ति-प्रधान और संघीय भावना से ओत-प्रोत है। भाईजी महाराज का अपना निर्णय थायथासंभव हर गांव को परसा जाए, जहां तक हो कोई खेड़ा भी न छूटे । तीन रात टौहाना बिराजकर 'लौन' के लिए विहार हुआ। २००५ चैत्र-कृष्णा त्रयोदशी का दिन था । वह हरियाणा का कच्चा मिट्टीदार रास्ता । धूप इतनी तेज निकली कि सन्तों को प्यास लग गई। रास्ते में 'धमताण' गांव आया। जमींदारों की बस्ती। छग्गु-बा बोले--मैं पानी ले आता हूं, आप रुको। वे पानी की गवेषणा में गए। एक जमींदार के घर गर्म उबला पानी मिला। छोगालाल जी स्वामी आधा पानी लाए, आधा छोड़ आए। यह सन्तों की विधि है। हमें आवश्यकता है पर गृहस्थ को भी आवश्यकता हो सकती है। सन्तों को देने के बाद पानी और बनाए, यह पश्चात् कर्मदोष है । उस गर्म पानी को ठंडा करने हमने गरणा (कपड़ा) लगाया, पानी ठर रहा था कि एक बूढ़ा जमींदार हाथ में लाठी लिये बकता-बकता आया—'कहां है वह सुसरी का साधु जो अभी-अभी पानी लाया है ? कहतेकहते उसने छग्गु-बा का हाथ पकड़ा और बोला-पानी तू लाया? बता! वह पानी कहां है? मुंह बांधकर लोगों को ठगता फिरता है ? बहुत देखे हैं तेरे जैसे मुंहपटिये ठगों को। छटांक पानी से, तेरा घोंटवा गीला होवै था । मैं जानता हूं तू मेरी बहू पर कामण (जादू-टोना) करके आया है ? बता-बता! वह पानी कहां है ? कहते-कहते उसने लकड़ी से पानी का पात्र उलटा कर दिया। वह उछलउछलकर लट्ठ तान रहा था। आज मैं नहीं छोड़ता। बहुत दिन हुए हैं तेरे को टोहते।
भाई लाजपतराय (टुहाना) और दुलीचंद (भिवानी) गर्म हो गये, बूढ़े से भिड़ २४४ आसीस
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