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यह तो एक गांवड़िये का गिवार भी जानता है कि क्या हाथी को ऊंटों की तरह टिचकारी मारकर हांका करते हैं ? आप सरकार ऐसे ही चलाते हैं ?
हम सब लोग देखते ही रह गये । शास्त्रीजी ठहाका मारकर हंसे और बोलेजो हुआ सो हुआ महाराज ! हमने आचार्यश्री जी से माफी मांग ली है। शास्त्रीजी क्षण भर रुके और कहने लगे-भाईजी महाराज ! चातुर्मास में आप जैसे फक्कड़, साफ कहने वाले संत यदि जयपुर में होते तो कितना अच्छा रहता।
छूटते ही भाईजी महाराज बोले-नहीं था, यही अच्छा रहा, शास्त्रीजी ! वरना आपसे तो मेरा जरूर-जरूर झगड़ा होता ही होता ।
संस्मरण २५७
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