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गजब-जैसा क्या है
विक्रम सं० २०१२ का मर्यादा महोत्सव भीलवाड़ा (मेवाड़) में हुआ। वह तेरापंथ धर्म-संघ की परीक्षा का समय था। तेरापंथ का अनुशासन कसौटी पर कसा जा रहा था। कौन संघ में गड़ा हुआ है और कौन डिग्गू-पिच्चूं, लोग परख रहे थे । नयी और पुरानी विचारधारा की टक्कर में कई स्फुलिंग उछले । एक अन्तरद्वंद्व सभी को झकझोर गया । जिधर देखो मन को क्लान्त करने वाले संवाद उभार ले-लेकर आते । गृह-संघर्ष की-सी स्थिति । संघ में विघटन करने लगी। मानसिक दुराव, असंतोष और पकड़ ने दो पाले बना दिए । एक पांणा दूसरे पांणे को तोड़ने के चक्कर चला रहा था। कुछ बीच-बचाव वाले इस कार्य में दलाल थे। लोग अनुमान लगा रहे थे, अबकी बार तेरापंथ आधा-आधा बंट जाएगा। अफवाहों का जोर था। कभी हल्ला आता साधु गए, तो कभी आता पांच तैयार हैं। कोई कहता आचार्यश्री ने चार सन्तों को निकाल दिया है, तो कोई कहता, दस मुनियों ने मिलकर आचार्यजी को करारी चुनौती दे दी। कब क्या हो जाए, सभी संदिग्ध थे। कुछ शासन-भक्त श्रावक तो यहां तक कहने लगे-इन मोड़ों का कोई विश्वास नहीं, लिया झोलका और ये गए । कैसा जमाना आया है ?
भीलवाड़ा मर्यादा-पांडाल के सामने ही धर्मशाला थी, जहां आचार्यप्रवर का प्रवास था। धर्मशाला के बरामदे में व्याख्यान के तुरन्त बाद कुछ विपक्षी समर्थक भाईजी महाराज से बातें कर रहे थे । खड़े-खड़े चर्चा छिड़ गयी। किसी ने कहा-शिष्टता तो दोनों ओर से रखने पर ही रहेगी। एक भाई ने कहा तो टालोकर शब्द ऐसा क्या घटिया है ? इसी बीच भाई जीवणमल जी सुराणा (चूरू) जोश खा गए। उन्होंने कहा-कौन कहता है, वे साधु टालोकर हैं ? असाधुत्व का उन्होंने कौन-सा काम किया ? वे टालोकर कैसे हुए?
भाईजी महाराज ने फरमाया-कौन क्या कहता है, मैं कहता हूं। जीवणमल
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