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करते हुए कहा-भाई जी महाराज! आज मेरे कारण आपकी असाता हुई, आप बड़े हैं, बड़े ही बड़ी विचारते हैं। उनकी भयंकर भूल थी। ऐसे शब्द-व्यवहार तो हम गृहस्थ भी नहीं करते, पर आप महान् हैं। आपने जो गम खाई, किसी को आशा नहीं थी। बढ़ने को तो काम बढ़ा ही पड़ा था। महाराज ! इसी का नाम बड़प्पन है । मेरे जैसा व्यक्ति आपके प्रति इसीलिए श्रद्धानत है । मैं जैसा हूं आप जानते हैं । आपकी सरलता से तो मैं परिचित था, पर समय पर आप गम भी खा सकते हैं, यह आज देखा। यों जहर का चूंट निगल जाना आसान बात नहीं है, भाईजी महाराज! आपने तो गजब कर दिया, गजब । - भाईजी महाराज ने गंभीर होकर कहा-जीवण ! तुमने इसे जरूरत से अधिक
आंका है, ऐसी गजब जैसी कुछ भी बात नहीं है। विरोधी तो इससे भी कटु और अभद्र व्यवहार कर लेता है। क्या हम उससे लड़ते हैं ?
उस दिन के बाद जब भी जीवनमल जी सुराणा (चूरू वाले) मिलते 'गजब' कहकर घटना की याद दिलाते और साथ ही साथ यह दोहा भी सुनाते
'करे संघ-हित करणियां, प्राणार्पण प्रख्यात ! गम खालेणे में जिवण ! गजब जिसी के बात?'
२७२ आसीस
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