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'गोली गार दिवार थे, चढ़ग्या लड़दा च्यार।
ढहण रा 'चम्पक' ढचक, ए साहमा आसार ॥' नयी चुनी हुई गीली दीवार है । तुम तीन तो इस मंची पर बैठे ही हो, चौथा और उतर रहा है। ____ उनमें से एक ने बीकानेरी बोली में कहा-'भीतो ढह्या करै है क्या? थों ढूंढिया क्या जाणो' ?
__ भाई जी महाराज शीघ्र गति से लाल कोठड़ी के चौक में पहुंचे । अडडडड...। एक आवाज आई, मंचान पर बैठे लोग चिल्लाए । घूमकर देखा, एक ओर की दीवार खिसक गयी थी। मंचान का एक भाग झुक गया। एक आदमी लटक गया। दो जन कूदकर खिड़कियों के रास्ते से भीतर पहुंच गये । एक व्यक्ति बेचारा रस्सी के बल अब भी अधबिच में झूल रहा था। पर चोट किसी के नहीं आई। सभी बालबाल बचे । ___ आवाज सुनते ही मांजी वीरमती दौड़कर बाहर आई। चारों आदमियों को नीचे बुलाया। दो-पांच गालियां डांटी। उन्हें लेकर लाल कोठड़ी के चौक में आई
और भाईजी महाराज के चरणस्पर्श करवाकर बोली-रोंड़रा ! थों क्या जाणीस महारासा ने?'
मांजी उन्हें समझा रही थी-सन्तों का प्रताप था, आज तुम बच गये । सन्तों को अनुभव होता है। देखा ! भाईजी महारासा की बात कितनी सच निकली।
संस्मरण २४३
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