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लेकर मैं आया, गुरुदेव ने मुझे शाबासी के साथ ३१ कल्याणक से पुरस्कृत किया। सन्तों ने मेरी हिम्मत सराई । मगन-मुनि ने दाद दी और मुनि जीवराज जी (संपत के संसार पक्षीय पिता) ने कृतज्ञता व्यक्त की।
आचार्य प्रवर ने फरमाया-सेवा भावना का पता ऐसे मौके पर लगता है । 'सेवा री शोख इंरो नांव' ।
'संतां! कठिन-कठिन सेवा को, अवसर जद कद आव। सब स्यूं आगे रह सेवार्थी, 'चम्पक' भाग्य सरावै ॥'
संस्मरण २४१
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