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देखो, फोड़ी नुई पातरी, थोड़ो सो चिमठाओ
भले आदमी मैं कद आसी, अक्कल मनै बताओ?' साध्वी गौरांजी ने मेरी ओर से नरमाई करते हुए कहा-भाईजी महाराज ! ये टाबर है, टाबर तो गलती किया ही करते हैं । आप महान हैं, कृपा कर यह पात्री मुझे दिरावो। मैं सांध लाऊंगी। __साध्वी गौरांजी की विनम्रता और मेरे प्रति सहानुभूति तथा श्री भाईजी महाराज की वत्सलता और उदारता मुझे अभिभूत कर गयी। उस दिन से मेरे में एक परिवर्तन प्रारम्भ हुआ। श्री भाईजी महाराज उसी दिन से मुझे गौरांजी का भाई और साध्वी गौरांजी को मेरी बहन फरमाने लगे।
संस्मरण २५३.
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