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ललाट पर निशान
शारीरिक और मानसिक विकास के लिए खेल भी आवश्यक होते हैं। खेल-खेल में बच्चों के व्यायाम के साथ-साथ सहज प्राणायाम भी सधता है । दीर्घश्वास का अभ्यास और सम स्वांस प्रयोग खेलों में अनायास ही हो जाता है । बच्चा गिरता है / उठता है / दौडता है / श्वास रोक कर खड़ा रहता है / प्रेक्षा करता है । खेल का खेल, योग का योग । हमारे युग में प्रमुख स्वास्थ्यप्रद खेल थे - कबड्डी, लुकमींचणी, मालदड़ी, गुल्ली - दंडा, लूंणा-घाटी, घोड़ीसवार, सिलियोभाटो, चोर-चोर, दड़बड़ी, ster-ड़ी और बोल मेरी मच्छी कित्ता पानी ।
भाईजी महाराज फरमाया करते - हमारा मोहल्ला विशेष अनुशासित था । हम सब एक थे । हमारा एका गांव भर में नामी था । हमारी दूसरी पट्टी के लड़के तगड़े और लड़ाकू थे । बीच के तीन साल तक मैं अपने संगठन ( बचाड़ी -पालटी) का प्रमुख रहा । हमारे बीच होने वाले खेल - विवाद को प्रमुख सुलटाया करता । हम लोग रात को एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले को चीरते हुए निकलते और बोलते – 'बा० ची० - बा० ची ० ' हम तुम्हारे बास को चीर कर निकल रहे हैं, ताकत हो तो रोक लो । न रोकने पर बास-संगठन की हार मानी जाती । हमारी दूसरी पट्टी को चीरकर जाने की किसी की हिम्मत नहीं थी । को चीरकर हम आ जाते और नुक्कड़ पर खड़े रहकर नारे हुर्रे' 'हिपि हिप हुर्रे ।'
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मुहल्ला चीरते समय कभी-कभी भिड़ंत हो जाती । पहले हाथा-पाई और फिर तकरार बढ़ जाने पर पत्थर भी चल पड़ते । चोटें भी लगतीं, पर उन दिनों गिनता कौन था सामान्य चोट को । पत्थर लगता, खून निकल आता, और हम गली की मिट्टी उठाकर उसे लगा देते । बारीक-बारीक मिट्टी घाव भर देती । ऐसी ही एक भिड़न्त में मेरे सिर पर पत्थर लगा। उसका निशान आज भी मेरे ललाट पर
संस्मरण
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दूसरी - दूसरी पट्टियों लगाते - 'हिपि - हिपि
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