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पूज्य गुरुदेव कालूगणीजी ने सब संतों के बीच संघीय भावना की शिक्षा देते हुए मुझे इक्कीस कल्याण से पुरस्कृत किया। संघपति सदा सेवा को प्रोत्साहन देते
- समय पर संघसेवा का ऐसा अवसर मिले यह जीवन का सौभाग्य होता है। संतों! अवसर मत चूको । उत्साहपूर्वक की गई सेवा निर्जरा-महाकल्याण का हेतु है। संघ का काम संघ से चलता है, संघ से बड़ा और कोई नहीं।
'संतां ! शासन में सदा, सेवाधर्म अतुल्य । श्रीकाल करुणा करी, आंक्यो सेवा-मुल्य ॥'
संस्मरण २३॥
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