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सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति, साध्वीप्रमुखा, महासती लाडांजी की पुण्य स्मृति में
दोहा
खरी कुशल खेमंकरी, खटी न खामी लाडां 'दीपां' दूसरी, हथणी की
दीपक लाडां दीपती, दीदारु चम्प ! चरुडो च्यानणो, पटुता प्रीत
सी
खेह ।
बिज्जल बंकी बेनड़ी, निर्मल 'चम्पक' आज चली गयी, मैं समरूं
देह ॥ १ ॥
दाठीक |
कला - कुशल कोमल कमल, पद की रंच न पीक । 'चम्पक' ! राखण चोकसी, लाडां तजी न लीक ॥३॥
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प्रतीक ॥२॥
धीरी धरणीधर जिसी, सरल स्वभावी शान्त । शुभ चिन्तन 'चम्पक' सतत, बणी न लाडां भ्रान्त ॥४॥
शासण नै सुगणी सती, दीन्हो अपणो भोग । 'चम्पक' अब चेत करें, लाडां नै सब लोग ॥५॥
शिक्षा - प्रिय, सेवा सजग, सहिष्णुता संस्कार । मातृ-हृदय स्याणी सदय, सती सिरे सरदार ॥ ६ ॥
शासण - नैण |
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दिन - रैणं ॥ ७ ॥
यादगारां १५६
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