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सात बात से एक जवाब
मनोहर- छन्द
एकरस्यां मोहन पे, गोप्यां मिल आई सात । एक साथ बोली, मांगें पूरी करवाइये । कविता सुणाओ नाथ ! कुश्ती दिखाओ' द्वार बन्द कर आओ', ब्याह मेरो रचाइये । कहो जी ! गुजरियों को गो-रस क्यूं लूट्यो आप' । घूमन की इच्छा, एक रथ तो मंगाइये । उबराणे फिरते क्यों ? 'चंपक' चकोर होके । 'जोरी नां' कहे कृष्ण, करूं क्या बताइये ॥ १ ॥
१. कविता - जोड़ी नहीं ।
२. कुश्ती कैसे लड़ ? –- पहलवान जोड़ी का नहीं ।
३. द्वार बंद तो करूं - पर किवाड़ों की जोड़ी नहीं ।
४. विवाह के लिए जोड़ीदार -बराबर का वर कहां है ?
५. जोरी दावे थोड़ा ही लूटा था ?
६. रथ के लिए बैलों की जोड़ी चाहिए, वह नहीं है ।
७. जूतों की जोड़ी नहीं है क्या करूं ? नंगे पांव फिरना पड़ता है ।
फुटकर - फूल
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