Book Title: Aacharya Shree Tulsi
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 21
________________ व्यक्ति नहीं, स्वयं एक संस्था रोक्ष गोविन्ददार, पनाम HTTTTTTTER को पूर्ण , मोर माना in यहाही . मामा , पागं ही है। मानव ६. उगी fryit को PRIL 34 am भी मा गे। परीस्मिनुमका जिमी पर उनकीमा को पानी प्रम-रणे भू-मास पर मिति समर बार उन्हें फिर पाने में गटाय गर्म frrinहम जगसीकोमा पामोत्तिकमा बाम उममे मिन-नान धोपन माट हैपौर राममाय मा गयो प्राषित गे प्लावित रमतामू को हग एक पूर्ण सत्य मानकर उसकी पनन्त किगों को उनके दो-छोटे मनन्त पूर्ण प्रण-पोंकीसमा दे सकते है। यही स्थिति का पौर परमेसर की है। गोस्वामी तुलसीदामनी ने कहा भी है : ईयर पा और मदिनामपात मानव-रपना ईस्वर के भरणुरूपों का ही प्रतिरूप है, ओ ममय के साथ अपने मूल रूप से पृथक मोर उममे प्रविष्ट होता रहता है । मूर्य-किरणों को भांति उसका मस्तित्व भी क्षणिक होता है, पर समय की यह स्वस्सा, मार की यह मल्पमता होते हुए भी माना की शक्ति, उसकी सामम्यं समय की सहवरी न होकर एक मतुल, पट मोर पक्षण्ड शक्ति का ऐसा स्रोत होती है। जिसकी तुलना में भाज सहस्रांश को वै किरणें भी पीछे पड़ जाती है जो जगती की जीवनदायिनी हैं। उदाहरण के लिए, भग्रेजी को यह उक्ति "There ths sun cannot rise the doctor does enter there कितनी यथार्थ है ! फिर माज के वंज्ञानिक युग में मानव की अन्तरिक्ष यात्राएं और ऐसे ही अनेकानेक चामत्कारिक अन्वेषण, जो किसी समय सर्वथा अकल्पनीय मौर मलौकिक थे, आज हमारे मन में प्राश्चर्य का भाव भी जागृत नहीं करते । इस प्रकार की

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