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भागात्री दुमी
पादोरमकामा महामायापर गरीतिक anाम ममने वामा मही है। महीfr frejार्ग मानिस गाना और सामाजिागान मे भी प्रतिक महोगनी निगा। गरिपाया गया
और गारे गमात्र के जीवन में मनिममामा मस्यों की स्थापना मंतिक पुनस्थान का सर्वाना मार्ग महामही ६ किलोगों के सामाजिक जीवन में मामा परिपनन हुने की मशीक्षा की जाए, यति मत गुपार पर ध्यान दिन किया जाए। म्पगियों रो ही समाज बनना है। यदिगा यति गम्मन बन जाए तो माना जिक उपान मे पथक प्रयाग के बिना होगमाज धर्म-रायण बन जाएगा।
जय कोई पनि प्रतिमा लेता है तो वह अपने को नतिक रूप में ना उठानेमा प्रयास करता है। यह अपने द्वारा प्रापन संध के प्रति शानिक भावना से प्रेरित होता है और इसलिए वह उम माधारण व्यक्ति को माना जिरो कानून अपवा सामाजिक प्रतिष्ठा के भय के प्रनावा और मिनी बात च प्रेरणा नही मिलती, ग्राज की दुनिया में अधिक मफल होता है।
प्रत्येक व्यक्ति में पेप्टता मोर महानना का स्वाभानिक अंग होता है बाई वह समाज के किसी भी वर्ग से सम्बन्धित पो न हो । यदि हम प्रत्येक व्यक्ति में मात्म-सम्मान की भावना उत्पन्न कर सकें और उसे अपने इन स्वाभाविक गुणों का ज्ञान करा सकें, तो चमत्कारी परिणाम पा सकते हैं। यदि मात्म-नान व प्रात्म-निष्ठा हो तो व्यक्ति के लिए सत्पथ पर चलना अधिक सरल होता है। ऐसी स्थिति में तब वह सदाचार का मार्ग निपंधक न रहकर विधायक वास्त. विकता का रूप ले लेता है। प्रतिज्ञा-ग्रहण का परिणाम ___ अणुव्रत-आन्दोलन अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य प्रौर अपरिग्रह के सुईिदित सिद्धान्तों पर पाधारित है, किन्तु वह उनमे नई सुगन्ध भरता है । कुछ लोग प्रतिज्ञानों और उपदेशों को केवल दिखावा पौर बेकार की चीजें समझ हैं, किन्तु भराल में उनमे प्रेरक शक्ति भरी हुई है। उनसे नि.स्वार्थ सेवा की ज्योति प्रकट होती है जो मानव-मन में रहे पशु-बल को जला देती है और उसकी राख से नया मामय जन्म लेता है, अमर पौर दवी प्राणी ।