________________
भारतीय संस्कृति के संरक्षक
कुछ लोग यह तर्क कर सकते हैं कि ये तो युगो पुराने मौलिक सिद्धान्त हैं और यदि प्राचार्यश्री तुलसी उनके कल्याणकारी परिणामों का प्रचार करते हैं तो इसमें कोई नवीनता नहीं है । यह तर्क ठीक नहीं है । यह साहसपूर्वक कहन होगा कि प्राचार्यश्री तुलसी ने अपने शक्तिशाली दढ़ व्यक्तित्व द्वारा उनमे ते उत्पन्न किया है।
प्राचार्यश्री तुलसी अणुव्रत-अान्दोलन वो अपने करीब ७०० निस्वार्थ साह साध्वियों के दल को सहायता से चला रहे हैं। उन्होने माचार्यश्री के कडे मन शासन में रहकर और कठोर सयम का जीवन विताकर प्रात्म-जय प्राप्त व है । उन्होंने धाधुनिक ज्ञान-विज्ञान का भी अच्छा अध्ययन किया है। इस मतिरिक्त ये साधु-साध्वी दृढ़ मरल्पवान् हैं और उन्होने अपने भीतर सहिष्णुर पौर सहनशीलता को अत्यधिक भावना का रिकास किया है, जिसका है भगवान् बुद्ध के प्रसिद्ध शिष्यो मे दर्शन होता है । प्राध्यात्मिक प्रभियान
यह प्राध्यात्मिक कार्यकर्तामों का दल जब गांवो भोर नगरो में निकल है तो पाश्चर्यजनक उत्साह उत्पन्न हो जाता है और नैतिक गुणों को सच्च पर श्रद्धा हो पाती है। जब हम नगे पाँव साघम्रो के दल को अपना स्व सामान सपने कयो पर लिए देश के विभिन्न भागों से गुजरते हुए देखते हैं यह वल रोमाचक अनुभव ही नहीं होता, बल्कि वस्तुतः एक परिणामदा पाध्यात्मिक अभियान प्रतीत होना है।
साधुसाध्वियां श्वेत वस्त्र धारण करते हैं। वे किमी वाहन का उपयं नहीं करते । उनका वाहन तो उनके अपने दो पाव होते हैं। वे साधारण किसी को सहायता नही लेते. उनका कोई निश्चित निवास-गृह नहीं होता न उनके पास एक पैसा ही होता है । माकि प्राचीन भारत के साधु-मन्तों परम्परा है, वे भिक्षा भी मांग कर लेते हैं । भ्रमर की तरह वे इतना ही पर करते हैं, जिससे दाता पर भार न पड़े।
प्राचार्यश्री तुलसीमायेर देवल लोगों को अपने जीवन पा सच्चा ल प्राप्त करने में सहयोग देने रा एक निःस्वार्थ प्रयास है। पूर्णता प्राप्त करने सार मी परतो पर गिड किया जा सका है। हिन्तु के लिए हम