Book Title: Aacharya Shree Tulsi
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 106
________________ पाराधी पक्ष Trai Tamhits एक 10 Hit RELIEARTUमत रहीम हीको भाया है। मेरे fulfilमेदार FITarai Putरोही और Fafalnefitो alोग भी है। मरामि एRixr को पी.कोमीकमकोयंदमयमा पानश्री मगीमा माया..मी को मार न मानन्ध में मुझ को मिनी गन 1.1 को पाप में प्रथम महा. पुरको निरगे या मापौर मामा मानधार मानर-दुरतामा एक मामें काशीना था। मैं यह मर मिलिए विपदोहारिया मा मेरो मामा गहन पार्मिक माह में उसने नहीं पा समरिन धिारी। यह एंगी सोनमी मनि पो, रिमन इन दोषियों को वठोर सपम और समू फागका चयन मनाने को प्रेरित किया? मैंने एसिप उनमें से कुपोभरीमीश-मामे जीवन का उपभोग करते हुए देखा था। दीक्षा. समारोह में में इतना रिटाहपा पारदौसाथियों को साफ-साफ देन साना पा। उनमें दो या तीन ला पोर एक लरकी यो पार चे यौवन की देहली मे पाव रसने जा रहे थे । एक दिन पहले मैंने को कुछ देखा, उसके बाद यह तो प्रश्न हो नहीं उठता कि उन्होंने प्रभाव से प्रेरित होकर यह निर्णय किया होगा । अवश्य ही पामिक वातावरण के प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकतान्तुि प्रायेक उदाहरण में कम यही एकमात्र प्रेरक सरण हो सकता है ? यदि इस यम को मानने वाले मेरी जान-पहिचान के कुछ लोगो की व्यावसायिक नतिरता मोर सामान्य जीवन-पति पर विचार पिया जाए तो यही कहना होगा कि यही एकमात्र कारण नहीं है। मुझे यह खेरपूर्वक लिखना पड़ रहा है. किन्तु उम समय मेरा यही तथा मोर स्वय पूज्य भाचार्यथी ने अपने मनुयायियों के बारे में, प्रणवत मान्दोलन के सिलसिले में, मपनी पर-पापा के दौरान मे कलकत्ता में जो कुछ कहा था, उस के माधार पर यह लिखने का साहस कर रहा है।

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