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प्राचार्यश्री सुनो विनिष्ट देश होगममा जाना चाहिए ।
भारत में यदि प्रानीन या पर्वाशन काल में गिो पारा सम्मानित हा पया पाज भी है तो अपने गम्य, त्याग, महिमा, परोसार (पामह) पानिकों के कारण ही न पानी गन्य शक्ति अथवा भौतिक राशि के कारण । किन्तु पारदेश में जो भ्रष्टाचार व्याप्त है और मैतिक पतन जिस मीमा तक प ता है, उसे एक 'नेहरू का प्रावरण' कर तक के रहेगा? एक दिन तो विश्व में हमारीख कर ही रहेगी और तर विश्व हमारी वामविहीनना को जान कर हमारा निरादर किये बिना में रहेगा। पत. भारतबारियों के लिए भागविक शक्ति के स्थान में भाज पणवा-भान्दोलन को शक्तिशाली बनाना कहीं पधिक हितकारी सिद्ध होगा मोर मानव, राष्ट्र तथा विश्व का वास्तविक वस्याण भी इमो में निहित है।
प्राचार्यश्री तुलसी का वह कथन, जो उन्होन उम दिन प्राने प्रवचन में पहा था, मुझं प्राज भी याद है कि एक स्थान पर जब हम मिट्टी का नहर बड़ा पोर ॐवा ढेर देखते हैं तब हमें महज हो यह ध्यान हो जाना चाहिए, किसी अन्य स्थान पर इतना ही वडा और गहरा गडढा खोदा गया है।"
शोषण के बिना संग्रह प्रसम्भव है। एक को नीचे गिराकर दूसरा उन्नाव करता है। किन्तु जहाँ बिना किमी का शोषण किये, विना किसी को नाच गिराये सभी एक साथ प्रात्मोन्नति करते हैं. वही है जीवन का सच्चा पार शाश्वत मार्ग।
'भरणुव्रत' नैतिकता का ही पर्याय है और उसके प्रवर्तक माचार्यश्री तुलसा महात्मा तुलसी के पर्याय बहे जा सकते हैं।