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प्राचार्यश्री तुलसी हैं । प्राचार्यश्री तुलसी के अनुसार यह मान्दोलन किसी सम्प्रदाय या धर्म-विशेष के लिए नहीं है । यह तो सबके लिए और सार्वजनीन है। प्रणात जीवन । वह न्यूनतम मर्यादा है जो सभी के लिए ग्राह्य एवं शक्य है। चाहे प्रात्मवाना हों या अनात्मवादी, बड़े धर्मज्ञ हों या सामान्य सदाचारी, जीवन की न्यूनतम मर्यादा के बिना जीवन का निर्वाह सम्भव नहीं है । अनात्मवादी पूर्ण महिमा म विश्वास न भी करें किन्तु हिमा प्रच्छी है, ऐसा तो नही कहते । राजनीति या कूटनीति को अनिवार्य मानने वाले भी यह तो नहीं चाहते कि उनकी पालया उनसे छलनापूर्ण व्यवहार करें। प्रसत्य और प्रप्रामाणिकता बरतने वाल भी दुमगे से सच्चाई और प्रामाणिकता की पाशा करते हैं। बुराई मानव का दुर्बलता है, उसकी स्थिति नहीं। कल्याण ही जीवन का परम सत्य है जिसका साधना व्रत (माचरण) है । प्रणवत-प्रान्दोलन उसी को भूमिका है। अणुयत विभाग
प्रणमत पांच हैं-महिमा, सरय, मचौर्य, ब्रह्मचर्य या स्वदार-संतोष मार अपरिग्रह या इच्छा-परिमाण ।
..पहिसाअहिमा-प्रणवत का तात्पर्य है-प्रन हिसासे, अनावश्यकता मान्य केवल प्रमाद या प्रज्ञानजनित हिसा से बचना। हिंसा केवल कापिाहा नहीं, मानसिक भी होती है और यह अधिक घातक सिद्ध होता है। माना" हिसा में भी प्रकार के शोपणो का समावेश हो जाता है और इसलिए " में छोटे-बड़े अपने-दिराने, स्पश्य-अस्पृश्य मादि विभेदो को परिकल्पना निषेध प्रपेक्षित होता है।
२. सर-जीवन को सभी स्थितियों में नौकरी, मापारपरेन या राम पपा ममार प्रति व्यवहार में सत्य का मामारण प्रणुवतीको मुख्य मापना
३. मनोय-सोमाविले मापापातम (जैन). केशविन्न मारिया सम्हमा (बोर) चोयं में मेरी मिष्टा, पोरीको मैं स्वाग्य मानता है। हम बोरन मै सम्पुर्ण पोरी में बचना सम्भव न मानो हुए भारती प्रतिभाता :-1. मरों की बात को भोरसि से नहीगंगा, २. मानदुसकर पारी की बानुनी समाचार न पोरी में प्रदायक बनमा .