Book Title: Aacharya Shree Tulsi
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 163
________________ रिम साधक तुलसीजी रन्छो प्रवृत्तियों या मान्दोलन के प्रचार के हेतु यह सव किया जाता हो तो या उसे अयोग्य या स्याज्य माना जा सकता है ? प्रतिष्ठा का मोह ऐसा है, जिसका त्याग करता हरा दिखने वाला कई पर उसका त्याग उससे अधिक पाने की माशा से करता है। दूसरे पर माक्षेप करते समय हम अपना प्रात्म निरीक्षण करें, तो पता लगेगा कि हमारी कहनी मोर करनी में कितना अन्तर है। हमें कई बार अपने-मापको समझने में कठिनाई होती है / लोकपणा को त्यागने का प्रयल करने वाले ही जानते हैं कि ज्यों-ज्यो बाह्य-रयाग का प्रयत्न होता है, त्यों-त्यों वह अन्तर मे जड़ जमाता है। यह बात प्रपना मानसिक विश्लेषण, प्रपनी प्रवृत्तियों का निरीक्षण परीक्षण करने वाला ही जानता है / कई बार त्याग किये हुए ऐसा दिखाई देने वाले के हृदय में भी उसको कामना होती है तो कई बार बाहर से दी हुई प्रतिष्ठा का भी जिसके हृदय पर असर न हम्रा हो ऐसे साधक भी पाये जाते हैं। इस 'लए तुलसीजी के हृदय में प्रतिष्टा का मोह है या धर्म-प्रसार को चाह, इसका नर्णय हम जैसो को करना कठिन है, इसलिए इस बात को उन्हीं पर छोड़ दें, पही थेष्ठ है। कर्मठ जीवन उन्होने बो धवल समारोह के निमित्त से वक्तव्य दिया, वह हमने देखा। वह भाषा दिखावे को नहीं लगती, हृदय के उद्गार लगते हैं। हमारी जब-जब बात हुई, हमने जो पर्चा की. वह प्रान्तरिक मोर साधना से सम्बन्धित ही रही है। हां, कुछ समाज से सम्बन्धित होने से सामाजिक चर्चा भी हुई. पर अधिकार साधना से सम्बन्धित होती रही है / इसलिए हम उन्हें 'परम सापक' मानते पाये हैं और कोई अब तक ऐसा प्रसंग उपस्थित नही हा कि हमें अपने मत को बदलना पड़ा हो। हमे उनमे कई गुणों के दर्शन हुए। ऐमो सगठन-चातुरो, गुणग्राहकता, जिज्ञासावृत्ति, परिश्रमशीलता, अध्यवसाय व शान्ति बहुत कम लोगो में पाई। हमने प्रत्यक्ष में उन्हें बारह बारह, चौदह-बौदह भण्टे परिश्रम करते देखा है। कई बार हमने उनके भक्तो से कहा कि इस प्रकार वे उन पर मत्याचार न करें। वे सबेरे चार बजे उठ कर रात को ग्यारह बजे तक बरावर काम करते हैं, लोगो से चर्चा या वार्ता होती रहती है। हमने देखा, न तो दिन

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