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प्रणुदत, प्राचार्यश्री तुलसी पौर विश्व-शान्ति बमों में कहाँ ! भारतवर्ष के लोग सत्य और अहिंसा की ममोघ शक्ति से परिचित है; क्योकि इसी देश में तथागत बुद्ध और श्रमण महावीर जैसे पहिंसा बत्ती हुए हैं । बुद्ध और महावीर ने जिस सत्य व अहिंसा का उपदेश दिया, उसी का प्रचार महात्मा गाधी ने किया। ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करने के लिए गाधीजी ने अहिसा का ही प्रयोग किया था। सत्य और अहिंसा के सहारे गाधीजी ने सदियों से परतन्त्र देश को राजनैतिक स्वतन्त्रता भौर चेतना का पथ-प्रदर्शित किया। प्रत भारत वर्ष के लोग महिमा की प्रमोध पाक्ति से परिचित हैं । सत्य, महिमा, दया और मंत्री के सहारे जो लड़ाई जीती जा सकती है, वह प्रणुबमों के सहारे नही जीती जा सकती।
वर्तमान युग मे सत्य, अहिंसा, दया और मंत्री के सन्देश को यदि किसी ने अधिक समझने का यल किया है तो निःसंकोच प्रणवत प्रान्दोलन के प्रवर्तक के नाम का उल्लेख किया जा सकता है। प्रणबम के मुकाबले प्रापंथी तुलसी का अणुव्रत अधिक शक्तिशाती माना जा सकता है। अणुव्रत से केवल बड़ी-बड़ी लहाइपा ही नहीं बीती जा सकती, बल्कि हृदय की दुर्भावनामों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। युद्ध के कारण का उन्मूलक
जन-सम्प्रदाय के प्राचार्यश्री तुलसी का भणुव्रत-प्रान्दोलन नैतिक प्रभ्युत्थान के लिए किया गया बहुत बड़ा पभियान है। मनुष्य के चरित्र के विकास के लिए इस माम्दोलन का बहुत बहा महस है। चोरबाजारी, भ्रष्टाचार, हिंसा, टेप, पूणा मोर पनतिरता के विरुद्ध प्राचार्यथो तुलसी ने जो पान्दोलन प्रारम्भ किया है. वह मब सम्पूर्ण देश में व्याप्त है। पण व्रत का अभिप्राम है उन छोटे. छोटे बतों का धारण करना, जिनसे मनुष्य का परित्र उन्नत होता है। सरकारी कर्मचारी, किसान, व्यापारी, उद्योगपति, पाराधी और मनीति के पोषक लोगों ने भी सणवत को धारण कर पपने जीवन को स्वच्छ बनाने का पत्न पिया है । कठोर काराण्ड भोगने के बाद भी जिन पपराधियों के परित्र में सुधार नहीं हुया, चे पणती बनने के बाद सच्चरित मोर नीतिवान हुए। इस प्रकार पणवत मानव-हाय को उन बुराइयों का उन्मूलन करता है जो पुट का कारण बनती है। प्राचार्यथी सुलसी का मंत्री-दिवस शान्ति भोर सदभावना