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प्रथम दर्शन और उसके बाद
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मेरी दिलचस्सी के कारण उन्होंने स्वय ही यह प्रस्ताव किया किया कि या पाप भाषात्रों के दर्शन करने के लिए मैंने कहा कि मुके इसमें क्या पाति हो सकती है ! एक माचार्य महानुष्य के दर्शनों से कुछ साभ ही मिलेगा। उन्होंने कुछ समय बाद मुझ सूचना दी कि दोपहर को दो बजे बाद वा समय रोक रहेगा ।
प्रथम दर्शन
मगभग बड़ाई बजे में उनके साथ उम पाल ने गया जिसमे प्राचार्यश्री के प्रबंधन हुआ करते थे। मैंने मित्र मानव-सा बना हुआ उपस्थितोगों को पत्र में एक काने में जा बैठा। यदि में मूलता नहीं, वो पूज्य माचाभी उन समय उच्च स्वायालय के व्यापी श्री क्षेत्रम सवारी के साथ बातचीत करने मे ममग्न थे। प्राचार्यश्री को निर्मन स्वच्छ और पवित्र तंग-भूषा तथा उनके पड़ा । में बुरबार २०-२५ मिनट बंद कर बता पाया। मैंन कोई बातचीत उग्र समय नहीं की और न करने की मुझे इच्छा ही हुई । कारण केवल यह था कि ने उनकी बातो मन पंदा नहीं करना चाहता था। जैसे
वृद्धी
ही उठ कर में चला, लगा जैसे कि उन मोटा
बना है।
माधवी दृष्टि मुझ पर पड़ी और मुझे ऐ भागों ने मुझे घेर लिया हो। फिर भी चुपचाप मे पहले दर्शन जिना वित्र मे सामने साज भी हो
जयपुर से प्रयास करने के बादधी का दिल दोलन कर पान किया जा चूका था।
पाथी अपने मन के साथ राहदानी
पर्चा की। नई दि
गया ।
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पधारे थे। बासा के धारको
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राजधानी की दुरानो नो
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