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असम दर्शन और उसके बाद किया है । सन्म विनोबा का भूदान और पूज्य पाचामंधी का भरावत-भान्दोलन, दोनों के पाद-विहार के साथ-साप गगा और जमुना को पुनीन धारापों की तरह सारे देश में प्रवाहित हो रहा है। दोनों की मृतवाणी सारे देश में एक सी गूंज रही है मौर मौतिकवाद की घनी कासी पटापों में बिजली को रेसा को तरह चमक रही है। मानव-समार ऐसे ही मत-महापुम्पों के नव-जीवन के माशामय सन्देशों के सहारे जीवित रहता है। वर्तमान वैज्ञानिक युग में जब प्रणवमी पौर महाविनाशकारी साधनों के रूप में उसकवार पर मृत्यु को सस कर दिया गया है, तब ऐसे संत महापुरुषों के अमृतमय सन्देश को और भी अधिक आवश्यकता है । प्राचार्य-प्रवर श्री तुलसी और सत-प्रवर श्री विनोबा इस विनाशकारी युग में नव-जीवन के ममतमय सन्देश के ही जीवन्त प्रतीक है। धन्य हैं हम, जिन्हे ऐसे संत महापुरुषों के समकालीन होने और उनके नैतिक नव-निर्माण के अमृत सन्देश मुनने का सौभाग्य प्राप्त है।
मत्त-भान्दोलन के पिछले ग्यारह बारह वर्षों का जब मैं सिंहावलोकन करता है, तब मुझे सबसे अधिक भाशाजनक जो प्रासार दौख परते है, उनमें उल्लेखनीय हैं--प्राचार्यश्री के साधु संघ का प्राधुनिकीकरण । मेरा अभिप्राय यह नहीं है कि साधु-मय के अनुशासन, व्यवस्था प्रथवा मर्यादानों में कुछ अन्तर कर दिया गया है। वे तो मेरी दृष्टि में और भी अधिक दृढ हुई हैं। उनकी ददता के विना तो साराही सेल बिगड़ सकता है, इसलिए शिथिलता की तो मैं कल्पना तक नहीं कर सकता । मेरा मभिप्राय यह है कि प्राचार्ययी के साधु-सघ मे अपेक्षाकृत अन्य साधु-सों के सार्वजनिक भावना का अत्यधिक मात्रा में संचार हुपा है और उसकी प्रवृत्तियां अत्यधिक मात्रा मे राष्ट्रोन्मुखी बनी हैं। प्राचार्यश्री ने जो घोषणा पहली बार दिल्ली पधारने पर को थी. वह अक्षरशः सत्य सिद्ध हुई है। उन्होने अपने साधु-सघ को जन-सेवा तथा राष्ट्र-सेवा के लिए अपित कर दिया है। एक ही उदाहरण पर्याप्त होना चाहिए । वह यह कि जितने जनोपयोगी साहित्य का निर्माण पिछले दस-ग्यारह वर्षों में प्राचार्यश्री के साधु-संघ द्वारा किया गया है और जन-जागति तथा नतिक धरित्र-निर्माण के लिए जितना प्रचार-कार्य हुप्रा है, वह प्रमाण है इस बात का कि समय की मांग को पूरा करने में माचार्यश्री के साधु-सघने,प्रभूतपूर्व कार्य कर दिखाया है और देश के समस्त साधुओं के सम्मुख लोक सेवा तथा