Book Title: Aacharya Shree Tulsi
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 152
________________ प्राचार्यश्री तुल पर प्रदट्टहास कर रहा है । वास्तविक मृत्यु मानव को वास्तविक मृत्यु नैतिक ह्रास होने पर होती है । नैतिक मारण से हीन होने पर वस्तुनः मनुष्य मृतक से भी बुरा हो जाता है, क्योरि साधारण मृत्यु होने पर 'मात्मा अमर बनी रहती है । न हन्यते हन्यमाने शरीरे (गोत्रा) किन्तु नैतिक पतन हो जाने पर तो शरीर के जीवित रहने पर भी 'ग्रात्मा मर चुकती है और लोग ऐसे व्यक्ति को 'हृदयहीन', 'मनात्मवादी', 'मानवता के लिए फल ' कहकर पुकार उठने हैं । इसी प्रकार नैतिकता से हीन राष्ट्र चाहे पैसा भी श्रेष्ठ शामनतन्त्र को न अगीकार करे, वह जनता की मात्मा को सुखी दया सम्पन्न नहीं बना सस्ता । ऐसे राष्ट्र के कानुन तथा ममस्त सुधारना प्रभाव कारी सिद्ध नहीं होते और न उसकी कृतियों में स्वामित्व ही माने पाता है। कोकि इन कृतियों का प्राधार सत्य और नतित्रता नहीं होती, अपितु एक प्रकार की असरवादिता प्रथा अनरसाधिका कृति ही होती है । नतिक सरल * विना भौतिका मुख-मायनों का वस्तुतः कोई मूल्य नहीं होता। प्रा और अणुमत प्रान्सोलन माज के युग में मागायक शक्ति का प्राधान्य है और इसीलिए इसे पल पुग की सजा देना सर्वया उपक्न प्रतीत होता है। विमान पार पानी परम सोमा पर है पौर उसने अपमान में मोति सोर निराली है, जो मापन विधारा सहार कुछ मिनटों में ही कराने में गम है। इसस सहारकारी पसने मनी भयो तर विमानपुर निवारणाय वो भी प्रयाग प्रकारान्तर से पार किये जा रहे है, उनके पांघे भी नाका मही भावना गमायो । पश्चिमी राष्ट्री की मगति से पीपर ने पुन. प्रा. पिस्कारों के गैप को योगा ही नही कर दी है, वनमः वह दो पार पीभगाकर भी कामदारकासाविक प्रतिषिया प्रमा पर और पपगेका नेमगित मागतान का है। अम रीका में कम से पहीही fresigal है पर .

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