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तेजोमय पारदर्शी व्यक्तित्व गार के वर्षों में दुनिया बहुत अधिक बदल गई है। किन्तु जिस समय मैंने ये रन थे ये, उस समय उनका विभिन्न जातियों, शामिक सम्प्रदायो और जीवनदर्शनों के बीच विद्यमान मत दो की दृष्टि से नुछ भोर ही महत्व था। उस समय मनुष्य भोर मनुष्य के मध्य सहिएता के प्रभाव के कारण से मतभेद इतने तीय और नस्लपनीय थे कि विचारों मास्वतन्त्र पादान-प्रदान न केवल मसम्भव; बल्कि पर्य हो गया था। इस प्रकार के मादान-प्रदान के फलस्वरूप प्रतिदिन मुस्थिर रहने वाले तनाव में वृद्धि हो हो सकती थी।
मैं पहला प्रश्न यो हेर-फेर के साथ मिन-भिल पमा के भनेक विद्यान धर्म गुरुपों घे पूछ पुगा है। उनमे एक रोमन कंपोनिक सम्प्रदाय के मुक्ति-पपी पारी, एक मुस्लिम मौलाना मोर एक हिन्दू सन्यासी पामिल थे। मुझे जो उनसे उत्तर मिले, वे या तो प्रत्यन्त दयनीय या निश्चित रूप से उरतापूर्ण थे। उनको समाधानकारक तो कभी नहीं कहा जा सकता।
दूसरे प्रश्न सम्बन्ध में दितीय महायर को मौत और विनाशके १५ पर तेजी से पागे बढ़ रहा था, पहिसा की विजय को समस्त पापो को निर्मल करता हपा प्रतीत होता पासा कि विधि पीननाप ने अपनी एक निराशाजनक पविता मे मी पापा की पुष्टि करते हुए कहा भी या-- करुणापन परणो लेकरो कम म.प। मध्य हो शान्ति दूसरे जसक महारमा पापो स्वम अपने पनुयायियों के विरोप और धामीम उदमारों के गावजूर भी पानी पदमा को माया र पिन भाव में स्टे हुए थे। मह स्पिति तोपस भारत में भी। पेष निया में नगर कानून का बोनसा पा र पदिसा का नाम में मात्र पर हलो मोर विरारपूर्वी मुनने को मिनती पो।
परभूमि में मन पग्ने हो मान ए और म विनामा और मायामा मिधित मासे उनके आगेको प्रवक्षा पापा, पोरसर से भासद्वारा लिने गरेको भारतीय मान प्रकार किसान समझे माने, मन ही उन्हें पायम कोरिनीतिको प्रार मागे न हो। में अपने पति सारोपन से. यो सपनायी थे, ऐसा होसमा
मेरि नहीं मानाओं को पारो पाई