Book Title: Aacharya Shree Tulsi
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons

View full book text
Previous | Next

Page 80
________________ ६० की समस्या के व्यावहारिक समाधान में संलग्न हो गये । पवित्रता का वृत्त यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि किसी भी समस्या को उनके व्यापक सामाजिक परिप्रेक्ष्य मे ही समझा और सुलझाया जा सकता है; परन्तु जब तक सामाजिक वातावरण में परिवर्तन नहीं हो, तब तक हाय-पर-हाथ घर कर बैठे रहना भी तो एक प्रकार को पराजित मनोवृत्ति का परिचायक है । जो समाज-तन्त्र की भाषा मे सोचते हैं, वे बडे-बडे पकड़ों के मायाजाल में उत हुए निकट भविष्य में हो किसी चमत्कार के घटित होने की द्वारा में निवेष्ट बैठे रहते हैं, परन्तु जो मानव को व्यक्ति रूप में जानते हैं और नि रोकड़ों व्यक्तियों के सजीव - सम्पर्क मे माते हैं, उनके लिए का खुला रहता है। धाचार्यश्री तुलसी के लिए व्यक्ति समाज की एक इकाई नहीं; प्रत्युत समाज ही की है। वे समान से होकर पति के पास नहीं पहुँचने, वरन् व्यक्ति से होकर समाज के नि पहुँचने का प्रयत्न करते हैं। समाज तो एक कल्पना है, जिसकी सरा व्यक्तियों को समष्टि पर निर्भर है, परन्तु व्यक्ति अपने पाप में हो सर है, हालांकि उसको सार्थकता समाज की युवापेक्षिणी होती है। मचार्यश्री सुनी का प्रश्नादोलन मी क्ति को लेकर चलता है, समाज तो उसका दूरमामी लक्ष्य है। पति को सुधार कर समाज के सुधार को चरम परि के रूप में प्राप्त करना चाहते है, समाज के सुधार को अनिवार्य परियति सुधार नहीं मानने। गनिए उन प्रारम्भिक में नया प्रतीत हो सकता है परन्तु उसमें महात्म्भावना की हुई है। निष्टा समाज में एक ऐसा पत्रकातो कोरोभी सम्पूर्ण समाज को बारे रेकी qat 47 670 feq14) K1 9414 KZT KR Wipez garbi मित्र, दार्शनिक और इ आचार्यश्री तुलसी कार्डीने

Loading...

Page Navigation
1 ... 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163