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मापायी तुलसी का एक सूत्र
७७ प्राचार्यश्री तुलसी एक मम्प्रदाय के धर्मगुरु हैं और विचारक के लिए किसी सम्प्रदाय का गुरु-सद कोई बहुत नफे का सौदा नहीं है । बहुधा तो यह पदवी विचारवान पोर तगाजरी का कारण बन जाती है। लेकिन माचार्यश्री की दृष्टि उनके अपने सम्प्रदाय तक ही निगरित नहीं है। ये सारे भारत के युग-द्रष्टा अपि हैं । जैन-शारान के प्रति मेरी मादर-बुद्धि का उपय उनसे परि. पप के सद हो हुप्रा है, पतएव मैं तो ध्यक्तिमा. उनका पाभारी हूँ।