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पानी
ही मार्ग पर पनने
हैन है।
भावानी ने उननाना है और विभिन्न मारिनों में
प्रायोजन के विषय में
उनको
वैज्ञानिक ढंग से भाषा की है।
लोक एक ऐमी जति द्वारा समाज का ऐसा संगठन किया जाता है कि मनुष्य उस गुयो र म । किबहुन लोकतन्त्रो सामाजिक जीवन को पोर देते हैं तो घन-सत्ता और घोषण के दर्शन होने है। राज्य नामक पोरातों में विभक्त दिलाई देठा है । मोक्त को उज्वल बना भयानक वास्तविकता में पर बहुत सष्ट रिपाई देता है। मानव प्रेम और प्रगाधनिष्ठा से प्रेरित होकर बारह वर्ष पूर्व प्राचार्यश्री तुलसी ने मत के मंत्रिक शास्त्र का विकार किया चोर उसको व्यावहारिक रूप दिया। धनु शब्द निसदेह जैन पात्रों से लिया गया है किन्तु प्रगुत-प्रान्दोलन में साम्प्रदायिकता का लवलेश भी नहीं है ।
इन पान्दोलन का एक प्रमुख स्वरूप यह है कि वह किमी विशेष धर्म का घान्दोलन नहीं है । कोई भी स्त्री-पुरुष इन प्रान्दोलन में सम्मिलित हो सकता है धीर इसके लिए उसे अपने धार्मिक सिद्धान्तों में तनिक भी इधर-उधर होने को प्रावश्यकता नहीं होती । अन्य धर्मो के प्रति सहिष्णुता इम प्रान्दोलन का मूल मन्त्र है । वह न केवल प्रमाम्प्रदायिक है, प्रत्युत सर्वव्यापी मान्दोलन है।
भरत जैसा कि उसके नाम से प्रकट है. अत्यन्त सरल वस्तु है। अणु का प्रथं होता है --- किसी भी वस्तु का छोटे-से-छोटा अंग । मत प्रणुव्रत ऐसी प्रतिना हुई, जिसका प्रारम्भ छोटे-से-छोटा होता है । मनुष्य इस लक्ष्य की ओर अपनी यात्रा सबसे नीचो सोढ़ो से प्रारम्भ कर सकता है। कोई भी व्यक्ति एक दिन में, अथवा एक महीने में वांछित परिणाम प्राप्त नहीं कर सकता । उसको धीरे-धीरे किन्तु गहरी निष्ठा के साथ प्रयत्न करना चाहिए धौर धनं:ः प्रपने कार्य क्षेत्र का विस्तार करना चाहिए। मनुष्य यदि व्यवसाय में किसी उद्योग मे या मौर किसी धन्धे में लगा हुआ हो तो श्रणुत्रत- मान्दोलन उसे उच्च नैतिक मानदण्ड पर चलने की प्रतिज्ञा लेने की प्रेरणा देता है । इस प्रतिज्ञा का माचरण बहुत छोटी बात से प्रारम्भ होता है और धीरे-धीरे उसमें
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