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नौकृष्ण के पाश्वासन की पूर्ति
को अत्यन्त पावश्यकता है। क्योकि नैतिक पतन का संकट भी इस समय राष्ट्र पर मंडरा रहा है, चारित्रिक मोर माध्यामिक मूल्यों को भुला देने की बात तो दूर रही, वेदों, उपनिषदों, ब्रह्मसूत्रों और भगवद्गीता के होते इए. महात्मा गाधी की महान नतिक और माध्यामिक शक्ति के उठ जाने के पश्चार भारतीय सामूहिक रूप में पतन की ओर अग्रसर हो रहे हैं और अपने समस्त उच्च प्रादों को भुलाते जा रहे हैं। इसलिए प्रणवत जैसे ग्रान्दोलन को अत्यन्त प्रावश्यकता है। राष्ट्र को प्राचार्यश्री तुलसी और उनके सैकड़ों साधु-साध्वियों के दल के प्रति वृतज्ञ होना चाहिए जो इस पान्दोलन को चला
हमे यह देखकर बडा सन्तोष होता है कि इस प्रान्दोलन का प्रारम्भ हुए यद्यपि दम-बारह वर्ष ही हुए है, किन्तु वह इतना शक्तिशाली हो गया है कि हमारे राष्ट्र के जीवन में एक महान नैतिक शक्ति बन गया है। हम इस मान्दोलन को भगवान श्रीकृष्ण के पाश्वासन की पूर्ति मानते हैं। उन्होंने भगवद गीता के चौथे अध्याय के पाठवें इलोक में कहा है कि धर्म की रक्षा करना उनका मुख्य कार्य है और वह स्वयं समय-समय पर नाना रूपों में अवतार धारण करते हैं। साधन चतुष्टय को प्राप्ति में सहयोगी
इमारे देश के नवयुवक हमारे सतों और महात्मापों के जीवन चरित्रों भौर धर्म-शास्त्रो का अध्ययन करके इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि शाश्वत सुख जैसी कोई वस्तु है पर उसे इसी लोक मौर जीवन में प्राप्त किया जाना चाहिए। हमारे धर्मशास्त्र कहते हैं-'तुम अनुभव करो प्रयवा नहीं, तुम पात्मा हो।' उसका साक्षात्कार करने में जितना बड़ा नाम है, उतनी ही बड़ी हानि उसे प्राप्त न करने मे है। इसलिए वे प्रात्म साक्षात्कार करने के लिए प्रवृत्त होते हैं । यह प्रात्मा है क्या और उसे कैसे प्राप्त किया जाए? यही उनकी समस्या बन जाती है। वे पात्म-ज्ञान का फल तो चाहते हैं, किन्तु उसका मूल्म नहीं चुकाना चाहते । वे साधन चतुष्टय (साधना के चार प्रकार की उपेक्षा करते हैं, जिसके द्वारा ही प्रात्म-ज्ञान प्राप्त होता है। प्राचार्यश्री तुलसी का प्रणुवत-पान्दोलन साधन चतुष्टय को प्राप्ति में बढ़ा सहायक होगा और मारमा