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भाचार्ययो तुन पादोगन के
प्रांगेर में पारायंत्री को मह मब लिला रिम मुझे तब तसगका भान भी नहीं पा र ममतों और महावों का पूर्व मुगियो ने निकास भी किया हो, लेकिन इसको एन-पास्मोलन का पानायो तुलसी नही दिया है, इसलिए उनके प्रादौनन के प्रपतंकव में मुः विरोध क्यों होता। स्तन. मे विरोध के मूल में प्रातः परिग्रह की पृष्ठ-मा
परिवह विरोधाभास ये उत्पन्न एक तारकालिक प्रतिक्रिया को भी अंशत: कुछ पूर्व धारणाएं थीं, जिनकी सगति में मात्र भी चैन-दर्शन से पुरुष नहीं मिला पाया हूँ।
उदाहरण के लिए मैं इम निष्कर्ष से सहमत रहा है कि माहार का र ये मनु न भेड़-बकरी की तरह शाकाहारी है और न परतेंदुनो का ६ मांसाहारी । बलिक उभयाहारी जन्तुमो म भालू. चूहे या काए । शाकाहार मोर मांसाहार दोनों प्रकार का प्राहार खा-पचा सकता है । मानव प्रकृति के विरुद्ध होने से मादमी के लिए माहार का दावा मूलतः है। दूसरे; पाहार चाहे वानस्पतिक हो प्रश्वा प्राणिज, उसमें जोवर ही है, अन्यथा प्राहार देह मे सात्म्य किंवा तद्रूप नहीं बन सकता। श्री माहार के ऊपर, स्थिति और हिंसा का त्याग, ये दोनों बातें एक साथ नह सकती। माहार-मात्र हिंसामूलक है, बल्कि माहार और हिंसा मामला पर्यायवाची हैं, ऐसी मेरो धारणा रही है।
इसके अतिरिक्त ईश्वर की सत्ता और धर्म को मावश्यकवा माद ।। हो विषयों पर मेरी मान्यताएं जैन विश्वासों से भिन्न थीं। जब बात निकली तो मैंने अपना कैसा भी मतभेद प्राचार्यश्री तलसी से छिपाया नह।
मेरा खयाल था कि प्राचार्यथी इस विषय को तकों से पाट दगा उन्होंने तर्क का रास्ता नहीं अपनाया और इतना ही कहा कि "मतमद - रहें, मनोभेद नहीं होना चाहिए।" मैं तो यह सुनते ही चकरा गया। त तो भव बात ही नहीं रही। चुप बैठ कर इसे हृदयंगम करने का हा
करने लगा। - श्रद्धा बढ़ी
बाद में जितना-जितना में इस पर मनन करता गया, उतनी ही मावाश्या