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महामानव तुलसी प्रान्दोलन को एक नैतिक शक्ति का रूप प्रदान कर दिया है। इस पान्दोलन का मूलाधार कोई राजनतिक या प्राधिक सगठन नहीं, बल्कि प्राचार्यश्री तुलसी का महान् मानवीय व्यक्तित्व ही है। एक सम्प्रदाय के मान्य प्राचार्य होते हुए भी पावाप्रवर ने अपने व्यक्तित्व को शाम्प्रदाधिक से अधिक मानवीय ही बनाये रखा है। प्राचार्यप्रवर अणुवतियों के लिए केवल सप-प्रमुख ही नहीं, उनके मित्र, दार्शनिक और मार्ग-दर्शक (Friend, Philosopher and Guide) भी है। वे अपने जीवन की कटिनाइयो, उलझनों और सुम्ब-दुख की सैकड़ों वावें प्राचार्यश्री तुलनी के सम्मुख रखते हैं और उनको अपने संघ-प्रमुख द्वारा जो समाधान प्राप्त होता है, वह उनकी सामयिक समस्याम्रो को सुलझाने के साथ ही उन्हें वह नैतिक बल भी प्रदान करता है जो अन्तत प्राध्यात्मिकता की मोर पग्रमर करता है। पावार्यश्री तुलसी की दृष्टि मे 'हल है हल कापन जीवन का'। प्राचार्यप्रवर मनप्य के जीवन को भौतिकता के भार से हलका देखना चाहते हैं, उसके मन को राग-विराग के भार से हलरा देखना चाहते हैं और अन्तत. उसको पास्मा को कमो के भार से हलका देखना चाहते हैं। उनकी दृष्टि पद-तारे को धरह इसी जीय-मुक्ति की पोर लगी हुई है। परन्तु वै लघु मानव को मंगुली पकड कर धीरे-धीरे उस लक्ष्य की ओर भागे बढ़ाना चाहते है। मेरी दृष्टि में प्राचायंधी तुलसी माज भी समाज सुधारक नहीं, एक मात्मसाधक ही हैं और उनका समाज सुधार का लक्ष्य पात्म-साधना के लिए उपयुक्त पृष्ठभूमिका निर्माण करना हो है।
माज के युग में जाकि प्रत्येक व्यक्ति पर कोई-न-कोई 'लेबल' लगा हमा हैपौर दलों के दलदल में फंसे हुए मानवता के पैर मुक्त होने के लिए छटपटा रहे किमी व्यक्ति में मगनव का हृदय और मानवता का प्रकाश देखकर चित्त मे मालार का अनुभव होता है। हमारा यह प्रासाद पाश्चयं में बदल जाता है. जब कि हम यह अनुभव करते हैं कि एक बहत एवं गौरवशाली सम्प्रदाय के भारारं होने पर भी उनकी निविरोप मानवता पात्र भी भक्षण्ण है। निस्सदेह भाचारंभी तुलसी एक महान साधक हैं, सहस्रो साधनों के एकमात्र मार्ग-निर्देशक है। एक धर्म सघ के व्यवस्थापक हैं और एक नैतिक प्रा-दोलन के प्रवर्तक । परन्तु और कुछ भी होने के पूर्व वे एक महामानव हैं। वे एक महान रात मौर महान पापा भी इमोलिए बन सके हैं कि उनमें मानवता वा जो मल द्रश्य है, बह कसौटी पर कसे हुए सोने के समान शुद्ध है।