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तीर्थकरों के समय का वर्तन
डा. होरालाल चोपड़ा. एन. ए., ओ.न्दि
वार, माता शिविद्यालय
पार मेहर tiriगे. भगान महानोर पोर भागन बुरे समय से पागा मिका निर पार किया जा रहा है. किन्तु पापाची लगीन परिगा की भाना को सिमे हमारे सामने रखा है। यह भूना हो है। महिमा का काम दाना हो रही है जिहन मनुष्या पमा यों की भावना को पापान न पाए. प्रति जोइन का बह . विधायक मुरूप है। यह मा, पवन ३ कम में मच प्रार की हिमा का निषेध करता है और ममस्त चनन पर प्रवेतन प्राणियों पर लागू होता है। पावाश्री तुममी ने अपने पारायंत्व काल में प्रतिमा की सच्ची भावना का केवल उसरे को ही नहीं, अपितु क्रियात्मक रूप से अपनाने पर बन
अहिंसा जीवन का नकारात्मक मन्य नहीं है। गांधीजी पोर मावापत्रा तुलसी ने बीसवीं शताब्दी मे उसको विधायक और नियमित रूप दिया है मार उसमें गहरा दर्शन भर दिया है। यह प्राब की दुनिया की सभी बुराइया का रामबाण प्रौषधि है।
दुनिया माज विज्ञान के क्षेत्र मे तोर प्रगति कर रही है और सभ्यता की कमोटो यह है कि मनुष्य भाका मे प्रयवा ब्रह्माण्ड मे उह सके, चन्द्रमा त पहेच सके, मयवा समुद्र के नीचे यात्रा कर सके, किन दयनीय बात यह है कि मनुष्य ने अपने वास्तविक जीवन का माशय भुला दिया। उसे इस पृथ्वी तत पर रहना है मोर पाने सहवासी मानो के साथ मिल-जलकर और समरस होकर रहना है। पाधी जी ने जीवन का यही ठोस गुगा सिखाया या प्रार पाचार्यश्री तुलसी ने भी जीवन के प्रति धार्मिक दृष्टिकोण से इसी प्रकार