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हो सय पहले मरेका प्रेमी र पा. पनेक बोटी-मोटी देनी रिया को का, राजा-महाराने मोर नपा प्राने-माने गम्र में महानमार राना यहरन रिमामलों में प्रजा का कोई भी प्रधिकार नहीं था। समाना भारत का कोई भी प्रसनही, जह!
म हो रहा हो और महीना का प्रधिकार न हो। मष्टि में मनात भारत एकही मूत्र में बात माह यह एक प्रकार की एकता है। यह प्रयव उन्ननिकाला है। इस बार पर बड़े-बड़े काम किये जा सकते हैं। चरित्र-भ्रम
छ सन्तोषजनक बातों के होने हए भो स्वानाध्य के बाद देश में प्रसन्तान फैल रहा है। पचवर्षीय योजनामो के सफल होने पर भी देश में शिकायतें मुन्न में पा रही हैं। ये दुःख को भावाजें साधारण जनता की दरिद्रता मोर पिछड़ा ह स्थिति के सम्बन्ध में नहीं हैं । चारो मोर से एक ही शब्द सुनने में माना है और वह है 'चरित्र-भ्रंश' । लोग अपने साधारण वार्तालाप मे, नेत-वर्ग अपन भाषणो में, यहो घापित करते हैं कि देश के सामने सबसे बड़ी समस्या बनता के चरित्र-भ्रश की है। धर्म मोर मानवता का पूरा तिरस्कार करके लोग माना स्वार्थ साधने में तत्पर हैं। जीवन के हरएक क्षेत्र में इस बात का अनुभव किया जा रहा है। जनता का ऐमा कोई भी वर्ग नहीं है जो हम चरित्र-भ्रश से करा हो। किसी वर्ग, दल, धर्म, सम्प्रदाय या बणं को दूसरों पर इस विषय न