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आधुनिक भारत के सुकरात
महर्षि विनोद. एम० ए०, पी-एच०डी०, न्यायरत्न, दर्शनालंकार प्रतिनिधि, विश्व शान्ति प्रान्दोलन, टोकियो (जापान);
सदस्य, रायल सोसाइटी माफ पार्टस्, लन्दन
तपस्या सर्वश्रेष्ठ गुण है
-पौषिस्त (तंत्तरीय उपनिषद्, १.९) प्राचार्यश्री तुलसी एक अर्थ में माधुनिक भारत के सुकरात हैं। वह एक पारगत तकविद् हैं, किन्तु उनकी मुख्य शिक्षा यह है कि सत्य केवल वाद-विवाद का विषय नहीं, प्रत्युत प्रावार का विषय है । एक साताब्दी से अधिक की अग्रेजी शिक्षा ने भारतीय मानस को तप्रधान बना दिया है। महात्मा गाधी, प. मदनमोहन मालवीय और डा. राधाकृष्णन ने इस बुराई का प्रकटत. बहुत कुछ निवारण किया है। प्राचार्यश्री तुलसी ने भारत में मिघ्या तकंवाद की बुराई को दूर करने के लिए एक नया ही मार्ग अपनाया है। उनका भाग्रह है कि मनुष्य को नतिक अनुशासनों का पालन करके सत्यमय भोर ईश्वरपरायण जीवन बिताना चाहिए । छोटा प्राकार, विशाल परिणाम
इन दिनों हम घटनामों पौर वस्तुपों को विशालता से प्रभावित होते हैं और उनके पान्तरिक महत्त्व की उपेक्षा करते हैं। फासीसी गणितज्ञ पोय केर ने कहा है कि एक चींटी पहाड़ से भी बड़ी होती है। पहाड़ की एक छोटी सी पट्टान सासों बीटियों को मार सकती है, किन्तु पहाड़ को यह पता नहीं चलता कि उसे स्वयं पोपयवा चीटियों को क्या हुमा । इसके विपरीत हर चींटी को पौड़ा चौर मृत्यु का भयं विदित होता है। प्राचार्यश्री तुलसी की पररावत.