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दामि युगे-मुगे चार्यश्री तुलसी को दिव्य वृष्टि जिन धर्माचार्यों ने वर्तमान परिस्थितियो को पच्छी तरह से समझ कर इस अवसर पर, भारतीय जनता पार भारतीय संस्कृति के प्रति अगाध श्रद्धा र प्रेम से प्रेरित होकर उसकी रक्षा और सेवा करने का निश्चय किया, मे पाचार्यश्री तुलमी का नाम प्रथम गण्य है । प्राचार्यश्री ने अपना 'मरणमतदोलन' प्रारम्भ करके वह काम किया है जो हमारे सबसे बडे विश्वविख्यात । नहीं कर मकने थे। उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देख लिया कि परित्र.
के क्या-क्या नरे प्रसर देश पर हो चुके हैं और अधिक क्या-क्या हो सकते - उन्होंने देखा कि इसके कारण देश का कृच्छ-सम्पाजित स्वातनाय सतरे में . चरित्र-ध्रा के कारण व्यक्ति, वर्ग, दल और जातियां परने-अपने स्वापं. धन में तत्पर है। देश, धर्म और मनिका चाहे जो भी हो जाए।चरित-श - एक बहुत करवा फर यह होता है कि अनना मे पारस्परिक विश्वास सर्वपा माप्त हो जाता है। जहां परस्पर विकास नहीं है, वहाँ मगठन नहीं हो सकता ; जहाँ फट होती है. वहाँ एकता नष्ट होती है। प्रम देश में फिर अलगजग होने की प्रवृत्ति बढ़ रही है । नये-नये मूत्रों की मांग पारों मोर से उठ ही है। इनके पीछे व्यक्तियो का पोर वर्गों का स्वार्थ ाि प्रा है। भाषा
पापी भगर जिस प्रकार उत्तर भारत में द्रोह और हिमा के कारण हो रहे -उसी प्रकार दक्षिण भारत दौर लकर मे भी व्यक्तिगत जीवन में इतना विस्य पा गया है कि मयम का कुछ भी मुल्य नहीं रहा। भारतीय साति
पाप हो सयम है । सयम-प्राण घरगुत-मान्दोलन प्रारम्भ करके माशायी नमो ने अपनी धर्मनिष्या पौराषिता दिखलाई है।
प्रणा के अन्तर्गत बी परत हैं. भारतीय मराति स्वलभीपरिचय सने पालो लिए कोई राय नहीं है। भारत में जितने पमं जान्न ए, उन सब में ना प्रथम स्थान है। मोतिये सब सबममूलक है और अपम हो भारतीय धौ । प्राग है। अपवा पम-मार पा, पाहे वह भारतीय 7 पपा विदेगो, सरम हो किसी न किसी रूप में प्रारत है। इसको गीकार करने में किसी भी धर्म के भनुपियों को पापति नहीं होनी चाहिए।
ये ४३ लिए पर रहे परे है कि महामानमें भी बार है और