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'म्भवामि युगे-युगे भियोग करने का अधिकार नहीं है । अब तक गायोजी हमारे बीच थे, तब कि हम लोगो के एक वरे पथ-प्रदर्शक धे। वे हरएक व्यक्ति को, हरएक दल जे, हरएक वर्ग को, शासन के अधिकाग्यिो को, समस्त देश को चरित्र की प्टि से देखा करते थे। उनकी वही एक बमोटी थी। राजनीति के क्षेत्र में एम मोर परिवबो रक्षा करने हा काम करना प्रगम्भव समझा जाता था। उनका सारा जीवन इस बात का प्रमाण है कि यह विचार अत्यन्त भ्रममूलक । प्रतिदिन अपनी प्रार्थना-सभाप्रो में जो छोटे छाट दम-द्रम मिनट के भाषण दया करते थे, उनसरा मुम्य उद्देश्य जनना का चरित्र-निर्माण ही था । उनके ये मापण बरे मामिक थे, विचारशील लोग उनकी प्रतीक्षा करते थे, समाचारपत्रों में सबसे पहले उन्ही शे पहा बरते थे और दिन में अपने मित्रों के साथ उन्हीं की चर्चा करते थे। इन भापणो का प्रभाय सरकारी कर्मचारियों पर, मध्यापक और विद्यार्थियो पर, व्यापारियों पर, गृहस्पो पर, घोरों पर, सारी जनता पर पहना धा । गाजी के स्वर्गवास होने के बाद उनका यह स्थान पर भी रिका है। कोई भी उमरो ग्रहण करने में अपने को समर्थ नही पा रहा है। धर्म निरपेक्षता बनाम धर्म-विमुखता
देश के पुननिर्माण में मरसे बसा नाम मोर पोर प्रादेशिक शामनों के द्वारा ही किया जा रहा है । यहाभाषिक भी है। उनके पान धक्ति भी है, धन भी है। परन्तु साम में सामनों की एक विशेष दष्टि होती है। उनका प्टि मधिवास प्राधिक होती है। हमारे सामन को धर्म-निरपेश सामन होने का बड़ा गई है। भारत में तो हमान शासन धर्म-निरपेक्ष भासन नही है। धर्म विप से निरपेक्ष भी हो हो, परन्तु मा धर्म में विमुप नही है।गईभी सासन सामा पर्म की उपेक्षा नही र सरता । परल बस्तुस्थिति यह है कि माननीबड़ी-बहरीकोनाएँ धर्म की रष्टि में नहीं बनाया होगहमाग सासनको रस पाहता है निता का परितगहो। हमारे मन को तरपनि में स्वासा के पति गिर रहा है। पन मामन विरबहस में पाक्षिक उन्नति के मार-गाय पीचर सर होहो जाएगो । धिनतिक मासा पस्न बरगवान राम